Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : २९ :
(आत्मधर्मनी सहेली लेखमाळा: लेख नं. ३४ अंक २६६ थी चालु)
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित ‘समाधिशतक’ उपर पू. गुरुदेवना
अध्यात्मभावनाभरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(वीर सं. अषाड वद त्रीज: गाथा ६२)
जीव शरीरादिकमां ज्यांसुधी आत्मबुद्धिथी प्रवृीत्त करे छे त्यां सुधी ज संसार छे,
अने भेदज्ञान थतां ते प्रवृत्ति मटी जाय छे ने मुक्तिनी प्राप्ति थाय छे–एम हवे कहे छे–
स्वबुद्धया यावद्गृह्णीयात् कायवाक्चेतसां त्रयम्।
संसारस्तावदेतेषां भेदाभ्यासे तु निवृत्तिः।।६२।।
काय, वचन ने मन ए त्रणे हुं छुं–एम ज्यांसुधी स्वबुद्धिथी जीव तेने ग्रहण करे
छे त्यांसुधी ते मिथ्याबुद्धिने लीधे तेने संसार छे. ज्ञानस्वरूप हुं छुं ने शरीरादि माराथी
जुदा छे–एवा भेदज्ञानपूर्वक भेदना अभ्यासथी संसारनी निवृत्ति थाय छे.
हुं ज्ञाता चिदानंदस्वरूप छुं–एम जे पोताना आत्माने श्रद्धा–ज्ञानमां ग्रहण
करतो नथी, ने शरीर–मन–वचन हुं एम ग्रहण करे छे ते मूढ जीव बहिरात्मा छे;
ज्यांसुधी शरीरादिने आत्मबुद्धिथी ग्रहण करे छे त्यां सुधी ज संसार छे. अने हुं तो
चिदानंद ज्ञानमूर्ति छुं, शरीर–मन–वचन हुं नथी, ते माराथी भिन्न छे–एवा भेदना
अभ्यासथी संसारनी निवृत्ति थाय छे.
जड साथे एकत्वबुद्धि ते संसारनुं कारण छे; अने भेदज्ञाननो अभ्यास एटले के
देहादिथी अत्यंत भिन्न एवा चैतन्यतत्त्वनी वारंवार भावना–ते मुक्तिनो उपाय छे.
भेदज्ञानथी ज मोक्षना उपायनी शरूआत थाय छे, ने पछी पण भेदज्ञाननी भावनाथी
ज मुक्ति थाय छे.
नियमसारमां कहे छे के–“आवो भेदनो अभ्यास थतां जीव मध्यस्थ थाय छे,
तेथी चारित्र थाय छे.” भेदज्ञान ते ज मोक्षनुं कारण छे. समयसारमां पण कह्युं छे के–जे
कोई जीवो सिद्ध थया छे तेओ भेदविज्ञानथी ज सिद्ध थया छे, ने जे कोई जीवो बंधाया
छे ते भेदज्ञानना अभावथी ज बंधाया छे. माटे–