Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : माह : २४९२
भावयेत् भेदविज्ञानं इदमच्छिन्नधारया।
तावत् यावत् परात्च्युत्वा ज्ञानं ज्ञाने प्रतिष्ठते।।१३०।।
अच्छिन्नधाराए आ भेदज्ञान त्यांसुधी भाववुं के ज्यांंसुधी ज्ञान परभावोथी
छूटीने ज्ञानमां ज लीन थई जाय.–जुओ, आवा भेदज्ञानवडे शुद्धात्मानी प्राप्ति थाय
छे. जे हजी तो एम माने के देह–वाणी ते हुं छुं, तेनां काम हुं करुं छुं,–ते तो देहथी भिन्न
आत्माने क््यारे ध्यावे? ने तेने समाधि के मोक्षमार्ग क््यांथी थाय? ते तो परमां लीन
थईने संसारमां रखडे छे.
आत्मा तो स्वप्रकाशक ज्ञाता छे, आ आंख तो जड छे, ते आंख कांई जाणती
नथी; आ शरीर, ईन्द्रियो, मन, वचन ते बधाय जड छे, ते कोई आत्मा नथी, आत्मा
ते कोईनी क्रियानो करनार नथी, आत्मा तो पोताना ज्ञान–आनंदस्वरूप छे.–आ प्रमाणे
जेना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रमां परथी भिन्न चैतन्यतत्त्वनो स्वीकार छे ते जीव मुक्ति पामे
छे. अने परद्रव्योने एकत्वबुद्धिथी जे ग्रहण करे छे ते संसारमां रखडे छे.
शरीर–मन–वाणीने ज जे पोतानुं स्वरूप माने छे तेने शरीरादि जडथी भिन्न
पोतानुं ज्ञान–आनंदस्वरूप भासतुं नथी, एटले शरीरादि उपरनी द्रष्टिथी तेने सदाय
असमाधि ज रहे छे. ज्ञानी तो जाणे छे के देह–मन–वाणी ते कोईनी साथे मारे कांई
लागतुं वळगतुं नथी; तेनुं गमे ते थाओ, हुं तो ज्ञान–आनंदस्वरूप ज छुं–आवा
भानमां चैतन्यस्वरूपना आश्रये धर्मीने समाधि थाय छे. शरीरमां रोगादि आवे के
निरोगी रहे ते–बंनेदशामां हुं तो तेनाथी जुदो ज छुं–एम भिन्नता जाणीने ज्ञानी
पोताना चैतन्यस्वभावनी ज भावना करे छे. अजीवना एक अंशने पण पोतानो
मानता नथी; एटले ते तो चैतन्यस्वभावमां लीन थईने मुक्ति पामे छे. आ रीते
भेदज्ञानने मोक्षनुं कारण जाणीने हे जीव! तुं निरंतर तेनो उद्यम कर.ाा ६१ाा
शरीरादि साथे एकतानी बुद्धि ते संसारनुं कारण छे, ने शरीरथी भिन्न
चिदानंदस्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे–एम कह्युं. हवे, धर्मात्माने शरीरथी
भिन्न आत्मानुं भेदज्ञान केवुं होय ते द्रष्टांतथी समजावे छे; जेम शरीर अने वस्त्र बंने
जुदा छे, तेम आत्मा अने शरीर बंने जुदा छे; धर्मीने वस्त्रनी माफक आ शरीर पोताथी
प्रगट भिन्न भासे छे.–ते वात चार गाथद्वारा बहु सरळ रीते समजावे छे–
धनेवस्त्रे यथाऽऽत्मानं न धनं मन्यते तथा।
धने स्वदेहेप्यात्मानं न धनं मन्यते बुधः।।६३।।
जेम लोकिकमां माणसो मोटुं जाडुं वस्त्र पहेर्युं होय त्यां पोताने ते जाडावस्त्ररूप नथी
मानता; तेम आत्मा उपर आ शरीररूपी वस्त्र छे; ते जाडा शरीरथी बुधपुरुषो पोताने