Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
ते शरीररूप–पृष्ट नथी मानता. जेम जाडा वस्त्रथी कांई शरीरनी पृष्टि नथी, तेम पुष्ट
शरीरथी कांई आत्मानी पुष्टि नथी.–आ रीते ज्ञानी प्रगटपणे पोताना आत्माने देहथी
तद्न भिन्न देखे छे. आत्मानुं शरीर तो ज्ञान ने आनंदमय छे, आ जड शरीर आत्मानुं
नथी. शरीर अने वस्त्र तो बंने जड छे, अने अहीं शरीर अने आत्मा तो बंनेनी जात
ज जुदी छे, आत्मा तो चैतन्यमूर्ति, ने शरीर तो अचेतनमूर्ति, एम बंनेनो स्वभाव ज
जुदो छे. वस्त्रना परमाणु तो पलटीने कदी शरीररूप थाय पण खरा, परंतु शरीर
पलटीने कदी आत्मारूप थाय नहि, ने आत्मा कदी शरीररूप जड थाय नहि; बंनेनी
जात ज अत्यंत जुदी छे. ज्ञानी तो पोताना आत्माने चेतनपणे ज देखे छे, जडशरीरने
कदी पोतापणे देखता नथी. जुओ, तद्न सहेलुं द्रष्टांत आपीने देह अने आत्मानुं
भिन्नपणुं समजाव्युं छे. वस्त्र तो घणा बदले पण शरीर तो तेने ते ज रहे छे, तेम
शरीरो अनेक बदल्या छतां आत्मा तो तेनो ते ज छे. जो देह ते ज आत्मा होय तो
देहना नाशथी आत्मानो नाश थवो जोईए; देहनी पुष्टिथी आत्माना ज्ञानादिनी पुष्टि
थवी जोईए;–पण एम तो बनतुं नथी. देह पुष्ट होय छतां जीव बुद्धिहीन पण होय छे.
जेम वस्त्र फाटी जाय तेथी शरीर तूटी जतुं नथी, केमके बंने जुदां छे; तेम शरीर तूटे
तेथी कांई आत्मा नाश थई जतो नथी, केमके बंने जुदां छे. माटे आत्मा देहथी तद्न
जुदा ज स्वभाववाळो छे. आम ज्ञानी पोताना आत्माने देहथी जुदो जाणीने तेनी ज
भावना भावे छे; अने आवी आत्मभावना ते मुक्तिनो उपाय छे.
(वीर सं. २४८२ अषाड वद ४)
* * *
ज्ञानी अंतरात्मा पोताना आत्माने देहथी अत्यंत जुदो जाणे छे तेनी आ वात
छे. परथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने जाणीने तेमां एकाग्रता करवी तेनुं नाम
समाधि छे. ए सिवाय परचीज मारी ने हुं तेनो अधिकारी–एवी जेनी मान्यता छे तेने
राग–द्वेष–मोहरूप असमाधि छे.
जेम जाडुं वस्त्र पहेरवाथी मनुष्य पोताने पुष्ट नथी मानतो, तेम हृष्ट–पुष्ट
युवान शरीरमां रहेवाथी धर्मी पोताने ते शरीररूपे नथी मानतो; धर्मी जाणे छे के आ
युवान शरीर के तेनी क्रियाओ ते हुं नथी, हुं तो चैतन्यमय आत्मा छुं. जेम जड थांभलो
माराथी जुदो छे, तेम आ देह पण माराथी जुदो छे. अज्ञानी मूढ जीव देहथी जुदाई
जाणतो नथी एटले देहादिप्रत्येना रागद्वेष छोडीने छूटकारो थवानो उपाय पण ते
जाणतो नथी. देहथी भिन्न चैतन्यतत्त्वने लक्षमां लीधा वगर रागादि छोडवा मागे तो ते
छूटी शके