Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : माह : २४९२
नहि. चैतन्यना आनंदमां एकाग्रता वडे ज रागादि छूटे छे.
शरीर ज हुं नथी, तो पछी शरीरनी निरोगताथी मने सुख थाय–ए वात क््यां
रही? शरीर आत्माथी जुदुं छे, ते शरीरवडे आत्माने सुख–दुःख नथी, आत्मा पोते ज
सुख–दुःखरूपे परिणमे छे. आत्मानो सहजस्वभाव तो चिदानंद–सुखस्वरूप छे, तेना
अनुभवमां तो सुख छे, पण तेने मूकीने अज्ञानी शरीरने पोतानुं मानीने तेना उपर
रागद्वेष करीने ते रागद्वेषने अनुभवे छे, ते दुःख अने असमाधि छे. ज्ञानी तो जाणे छे
के ज्ञान अने आनंदथी पुष्ट एवो मारो आत्मा छे, ते ज मारुं स्व छे.–आवा
आत्मभानमां ज्ञानी पोताना चैतन्यसुखने अनुभवे छे, ते समाधि छे, ते मोक्षनुं
कारण छे.
आपनो सहकार
आप छेल्ला त्रण अंकथी जोई शक््या हशो के आपनुं प्रिय
मासिक “आत्मधर्म” अनेकविध नवीनता साथे विकासना पंथे कदम
मांडी रह्युं छे. आप आत्मधर्मना ग्राहक थईने तेमज बीजा
जिज्ञासुओने पण ग्राहक बनावीने, ए रीते वाचकवर्ग वधारीने
आत्मधर्मना विकासमां आपनो सहकार आपी शको छो.
‘आत्मधर्म’ ए अत्यंत निष्पक्षपणे उत्तमशैलीथी जिनवाणी ने
गुरुवाणीनो प्रचार करनारुं साधन छे, एना विकासमां दरेक
आत्मार्थी जीवोनो सहकार छे.
सम्यग्दर्शन: पुस्तक पहेलुं–बीजुं–त्रीजुं:
त्रण पुस्तकोना सेटनी पडतर किंमत रूा. छ होवा छतां
प्रकाशकोनी भावनाथी तेनी किंमत मात्र रूा. बे राखवामां
आवी छे. सम्यक्त्वनी प्रेरणा आपनारा आ पुस्तको सर्वे
जिज्ञासुओने खास उपयोगी छे. प्राथमिक जिज्ञासुओने पण
समजाय तेवा छे. थोडी ज प्रतो बाकी छे. बीजुं पुस्तक
रत्नसंग्रह, चूंटेला एकसो सर्वोपयोगी रत्नोनो रंगबेरंगी
संग्रह किंमत रूा. १– बेसखी: अंजनाचारित्र ०=प०