Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 38 of 55

background image
: माह : २४९२ आत्मधर्म : ३३ :
(लेखांक: ९)
* * * * *
तत्त्वरसिक जिज्ञासुओने प्रिय, दश
प्रश्न–दश उत्तरनो आ विभाग पू. गुरुदेव
पासे थयेल तत्त्वचर्चाओमांथी तेमज
शास्त्रोमांथी तैयार करवामां आवे छे. –सं.
*
(८१) प्रश्न:– ज्ञान अने ज्ञेय बंनेनुं क्षेत्र सरखुं छे?
उत्तर:– ना; ज्ञानना क्षेत्र करतां ज्ञेयनुं क्षेत्र अनंतगुण अधिक छे. ‘ज्ञाननुं क्षेत्र
तो असंख्यप्रदेश छे ने ज्ञेय तो अनंत प्रदेशी लोकालोक छे.
(८२) प्रश्न:– नाना क्षेत्रमां मोटुं क्षेत्र कई रीते जणाय? ज्ञाननुं क्षेत्र तो नानुं
छे ने ज्ञेयनुं क्षेत्र तो महान छे, तो नाना क्षेत्रवाळा ज्ञानमां मोटा क्षेत्रवाळुं ज्ञेय केवी
रीते जणाय?
उत्तर:– जाणनारनी एवी ज शक्ति छे के ते अनंत ज्ञेयोने जाणी ल्ये छे. मोटा
ज्ञेयने जाणवा माटे क्षेत्रथी मोटुं थवानी जरूर पडती नथी. ज्ञाननुं सामर्थ्य वधतां तेनुं
क्षेत्र पण वधे एवो नियम नथी. नहितर तो केवळज्ञान थतां ते आत्मा लोकालोकमां
कयांय समाय ज नहि. केवळज्ञाननुं क्षेत्र मर्यादित छे पण तेनुं भावसामर्थ्य अमर्यादित
छे; तेथी पोताना करतां अनंतगुणा मोटा क्षेत्रने पण ते जाणी ल्ये छे. जेम पोते एक
होवा छतां अनंता ज्ञेयपदार्थोने जाणी ल्ये छे, जेम पोते एक समयनुं होवा छतां
अनंतकाळने जाणी ल्ये