Atmadharma magazine - Ank 268
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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जैनशासनमां निश्चय–व्यवहार
गुरुदेवे बतावेलो जैनशासननो आ टूंको नीचोड छे–
जेना मननथी हजारो प्रश्नोनो उकेल थई जाय छे. –सं.
* निश्चय–व्यवहार बंनेनी संधिपूर्वकनी वीतरागवाणी जैनशासनमां ज छे.
* ए वीतरागनी वाणी वस्तुनी स्वतंत्रताने जाहेर करे छे, अने सहकारी अनेक
निमित्तोने पण जाहेर करे छे.
* उपादान अने निमित्त ए बंनेने स्वीकारवा अने छतां बंनेनी स्वतंत्रता
स्वीकारवी, एवी निश्चय–व्यवहारनी संधि वीतरागी जिनमार्गमां ज होय.
* शुद्ध आत्मद्रव्य अखंड ते निश्चयसम्यक्त्वनो विषय, तेनी साथेनुं
व्यवहारसम्यक्त्व देव–गुरु–शास्त्रने, छए द्रव्योने, तेना गुण–पर्यायोने, बंध
मोक्षने, निमित्तोने, ए बधाने स्वीकारे छे. आवो सम्यग्दर्शननो निश्चय–व्यवहार
जैनशासनमां छे.
* छए द्रव्यो पोतपोताना गुण–पर्यायनुं मूळ कारण छे, ने ते ज उपादान छे, अन्य
पदार्थ तो बहिरंग सहकारीकारण छे. शुद्धआत्मा ते निश्चयथी सम्यक्त्वनुं उपादान
छे, ने बाह्यपदार्थो–छद्रव्यो–निमित्तो ते बधा व्यवहारसम्यक्त्वना विषयो छे,
व्यवहारसम्यक्त्व ते बधाने स्वीकारे छे, पण निश्चयसम्यक्त्व शुद्धस्वद्रव्यने ज
निर्विकल्पपणे स्वीकारीने तेमां ज एकत्व करे छे.
* निश्चय व्यवहार बंनेना विषयो एक साथे जणावीने वीतरागनी वाणी निश्चयना
विषयभूत शुद्धआत्मानो ज आदर करावे छे, केमके सम्यग्दर्शनादिने माटे ते
शुद्धआत्मा ज उपादेय छे. अने उपादेय करवाथी ज सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
* निश्चय–व्यवहारनुं आवुं वीतरागी रहस्य प्रकाशनार जैनशासन जयवंत वर्तो.
(पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी)
* * *
आपनां बाळकोने नानपणथी ज धर्मनो रंग लगाडवा, अने
उच्च संस्कारोनुं सींचन करवा माटे आपना घरमां ‘आत्मधर्म’
मंगावो. आपनां बाळकोने बालविभागना सभ्य बनावो.