Atmadharma magazine - Ank 269
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : फागण : २४९२
चालो
समवसरणमां
भगवाननी धर्मसभामां दिव्य नगारुं वागे छे ते कहे छे के–‘जेने आत्मा
जोईतो होय, जेने शांतिना कुंडमां नहावुं होय, आत्माना आनंदसागरमां तरबोळ थवुं
होय....ते जीवो अहीं भगवाननी धर्मसभामां आवो ने तेमनी वाणी समजो. जेने
चैतन्य भगवानने भेटवुं होय ते आ भगवान पासे आवो. आवो रे
आवो....धर्मसभामां, आत्माने ओळखीने अनंतकाळनी भूख भांगवी होय ने
स्वरूपसंयम मेळववो होय, दुःख टाळवुं, होय ने शांति जोईती होय तो.’ आम
भगवाननुं दुदुंभी–नगारुं पोकार करे छे. अने भगवानना समवसरणमां अनेक संतो–
मुनिओ, जंघाचरण आदि ऋद्धिधारक मुनिओनां टोळेटोळां, देवो ने विद्याधरो
आकाशमार्गे आवीआवीने दर्शन करे छे, चक्रवर्ती ने राजकुमार वगेरे पण आवे छे;
जंगलमांथी त्राड पाडतां सिंह ने फूंफाडा मारता फणिधर वगेरे तिर्यंचो पण भगवान
पासे आवीने शांत लईने बेसी जाय छे....