(संपादकीय)
अहो...सीमंधर भगवान! आपनी सर्वज्ञता...आपनो अतीन्द्रिय आनंद अने
साथे साथे आपनी दिव्यवाणी ए बधाने लक्षगत करीने आपश्रीने परम भक्तिथी
नमस्कार करीए छीए.
प्रभो, आजे अमारे आनंदनो दिवस छे...सं. १९९७ ना फागण सुद बीजे आप
अमारी नगरीमां पधार्या ने आ नगरी सुवर्णनी बनी गई...आपश्रीनी पधरामणीने
आजे पचीस वर्ष थया.. आपश्री पधार्या त्यारे अमारा हर्षानंद उल्लासनो पार न
हतो; ने पचीस वर्षमां तो आपनी मंगल छायामां अनेक धर्मवृद्धिनां प्रसंगो बन्या.
प्रभो, आपना विदेहमांथी अहीं आवेला आपना भक्तोए अमने आपनो
वीतराग मार्ग देखाडयो...आपना ए भक्तोए भरतक्षेत्रमां पण जातिस्मरण वडे आपनो
साक्षात्कार कर्यो...ने आपनी मधुरी वाणीमां आवेला अनेकविध मंगल संभारणां ताजा
थतां अहीं आनंद–आनंद छवाई गयो. प्रभो! आप आव्या ने बीजे ज वर्षे आपनां
समवसरण आव्या, कुंदकुंद प्रभुने पण आप साथे ज लाव्या..पछी तो मानस्तंभ पण
आव्या..ने हजारो भक्तो आपना चरण सेववा आवतां तेर वर्षे मंदिर टूंकुं पड्युं...तेथी
मोटुं विशाळ–ऊंचुं मंदिर बंधायुं...प्रभो! अमारा महाभाग्ये आप सदा अमारी नजर
समक्ष बिराजी रह्या छो ने मंगल कृपाद्रष्टिथी अमारुं कल्याण करी रह्या छो. अहो, आपनी
सर्वज्ञता, आपनी वीतरागता, आपनो पूर्णानंद, आपनो स्वाश्रित मार्ग, आपनो आ
बधो अचिंत्य आत्मवैभव आपना भक्त कहान अमने अहीं ओळखावी रह्या छे...ने
आपना स्वरूपनो साक्षात्कार करावी रह्या छे. प्रभो! अमे तो आपनी पासे विदेहमां नथी
आवी शकता पण आप विदेहथी कृपा करीने अहीं पधार्या छो तेथी अमारे तो जाणे अहीं
ज विदेहक्षेत्र आव्युं होय, ने अमे विदेहना मानवीओनी वच्चे ज वसता होईए...एम
आत्मा उल्लसे छे. आपना भक्तोना श्रीमुखथी रोजरोज आपनी वाणीनो संदेश
सांभळीए छीए...ए सांभळतां आपना प्रत्ये परम भक्ति जागे छे.
प्रभो! आपने सर्वज्ञस्वरूपे ज्यां लक्षमां लईए छीए त्यां तो अमारो आत्मा
ज्ञानमय बनी जाय छे...राग साथेनो संबंध तूटी जाय छे ने सर्वज्ञस्वभाव साथे संधि
थाय छे...आपना चिंतनथी आनंदनी धारा उल्लसे छे.
हे परम उपकारी देव! आपना चरणोमां फरीफरीने नमस्कार हो.