Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९२
चोथा करतां पांचमा गुणस्थाने स्वभावनुं विशेष अवलंबन छे, त्यां
अप्रत्याख्यानसंबंधी चारे कषायो छूटी गया छे, ने आनंद वधी गयो छे. सर्वार्थसिद्धिना
देव करतां पंचमगुणस्थानवर्ती देडकाने आत्मानो आनंद वधारे छे. पण ए दशा
सम्यग्दर्शनपूर्वक ज होय छे–माटे सम्यग्दर्शन प्राप्तिनो परम प्रयत्न कर्तव्य छे. आवुं
सम्यग्दर्शन पामीने तेनी निरंतर रक्षा करवी.
अरे, चोराशीना अवतारमां सम्यक्त्वनी प्राप्ति घणी ज दुर्लभ छे. रागादि
परिणाम आवे छतां अंतरनी द्रष्टिमांथी शुद्धस्वभाव कदी खसे नहि; अहीं श्रावकना
व्रतनो उपदेश आपशे छतां तेमां व्रतना रागनी मुख्यता नथी, मुख्यता शुद्धस्वभावनी
ज छे. जो तेनी मुख्यता छूटीने रागनी मुख्यता थई जाय तो सम्यग्दर्शन पण न रहे.
जेणे सम्यग्दर्शन प्रगट कर्युं तेणे मोक्षनुं झाड आत्मामां वावी दीधुं. चोराशीना
अवतारनुं बीज तेणे बाळी नांख्युं. माटे हे मुमुक्षु! तुं आवा सम्यक्त्वनो परम उद्यम
कर. एना वडे ज तारी सत्समागमनी सफळता छे. जे ध्येयने तुं निवृत्ति लईने सत्संग
करी रह्यो छे ते ध्येयने तुं भूल मा....ढीलुं थवा न दे.
* * * * *
जैनदर्शन शिक्षण वर्ग
सोनगढमां दरवर्षनी माफक उनाळानी
रजाओ दरमियान जैन विद्यार्थीओ माटेनो धार्मिक
शिक्षणवर्ग ता. १प–प–६६ वैशाख वद १०
(बीजी) ने रविवारथी शरू करीने ता. ३–६–६६
जेठ सुद १प ने शुक्रवार सुधी चालशे. शिक्षण
वर्गमां आववा ईच्छा होय तेमणे नीचेना सरनामे
सूचना मोकली देवी ने टाईमसर सोनगढ आवी
जवुं. (पोतानुं बेडींग साथे लाववुं)
श्री दि. जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ
(सौराष्ट्र)