Atmadharma magazine - Ank 270
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९२ आत्मधर्म : ४५ :
ध्ये य ने ढी लुं
थ वा न दे
जे ध्येयथी तुं निवृत्तिपूर्वक सत्संग सेवी रह्यो छे ते ध्येयने तुं भूल नहि
ते ध्येयने तुं ढीलुं थवा न दे; एटले के हे मुमुक्षु!
तुं सम्यकत्त्वनो उद्यम कर,

मोक्षरूपी वृक्षनुं बीज सम्यग्दर्शन छे; ने संसाररूपी वृक्षनुं बीज मिथ्यात्व छे–
एम भगवान जिनदेवे कह्युं छे. माटे मुमुक्षुए सम्यग्दर्शननी प्राप्ति माटे अत्यन्त
प्रयत्न कर्तव्य छे. अरे, संसारमां घणा घणा भवोमां सम्यग्दर्शन वगर जीव कुकर्मोथी
भटक््यो, दीर्घकाळ वीतवा छतां प्राणी सम्यग्दर्शनने क््यां पामे छे? सम्यग्दर्शननी
प्राप्ति महादुर्लभ छे; माटे हे जीव! तुं सम्यग्दर्शननी प्राप्तिनो परम उद्यम कर.
सम्यग्दर्शन चोथे होय छे, व्रत पांचमे होय छे. सम्यग्दर्शन वगर मात्र रागथी
पांचमुं गुणस्थान के धर्म माने के मोक्षमार्ग माने तो तेमां मिथ्यात्वनुं पोषण थाय छे;
मोक्षमार्गना क्रमनी तेने खबर नथी. मोक्षनुं बीज सम्यग्दर्शन छे. तेना वगर धर्मनी
शरूआत थाय नहि, तेना विना श्रावकपणुं के मुनिपणुं होय नहि. अरे जीव! धर्मनुं
स्वरूप शुं छे ने मोक्षमार्गनो क्रम शुं छे–ते पहेलां जाण. सम्यग्दर्शन वगरना पुण्य तें
अनंतवार कर्या छतां तुं संसारमां ज रखडयो, ने दुःख ज भोगव्यां.
राग वगरनो आत्मानो भूतार्थ स्वभाव शुं छे तेने ओळखवाथी ज आत्मा
सम्यग्द्रष्टि थाय छे; ज्यारथी सम्यग्द्रष्टि थाय त्यारथी ज मोक्षमार्गी थाय छे. पछी
आगळ वधतां शुद्धी अनुसार पांचमुं–छठ्ठुं वगेरे गुणस्थानो प्रगटे छे.
ज्यां सम्यग्दर्शन नथी त्यां रागमां एकताबुद्धि छे, त्यां तो धर्म ज नथी; त्यां
व्रतादि बधुं बालव्रतादि छे. अने ते बालव्रतना रागने धर्म माने त्यां ‘बकरुं काढतां
उंटीयुं पेठुं’ एना जेवुं थाय छे–एटले जराक अशुभ छोडीने शुभने धर्म मानवा गयो
त्यां मिथ्यात्वना मोटा अशुभरूपी ऊंटीयो पेसी गयो.