३७ धर्मात्मा बीजा साधर्मी–धर्मात्मा उपरनुं दुःख जोई शकता नथी.
३८ धर्मात्मानो अवतार जन्म–मरणना फेरा टाळवा माटे छे.
३९ धर्मात्मा रत्नत्रय वडे संसारने तरता होवाथी पोते ज साक्षात् तीर्थ छे.
४० धर्मात्मा घोर प्रतिकूळता वच्चेथी पण पोतानो मार्ग साधी ल्ये छे.
४१ धर्मात्माने जगतनी कोई मुश्केली हितमार्गथी डगावी शकती नथी.
४२ धर्मात्मा प्रतिकूळतामां घेराता नथी पण पुरुषार्थ जगाडे छे.
४३ धर्मात्मा आत्मबळवडे निर्भयपणे आत्महितना मार्गमां झुकावे छे.
४४ धर्मात्मा जगतनी निंदानी परवा कर्या वगर सत्पंथे प्रयाण करे छे.
४प धर्मात्मा कहे छे के जगतथी डरीश मा ने हितमार्ग छोडीश मा.
४६ धर्मात्मानुं धैर्य अने आत्मबळ अमने आश्चर्य उपजावे छे.
४७ धर्मात्मानी सहनशीलता ने एना वैराग्यनी गंभीरता अजब छे.
४८ धर्मात्मा प्रतिकूळताना प्रसंगेय पोताना तत्त्वनिर्णयथी डगता नथी.
४९ धर्मात्मानुं जीवन आत्महितने माटे सतत चिंतनशील होय छे.
प० धर्मात्माना आत्मिकआराधनाना संस्कार साथे ने साथे ज रहे छे.
प१ धर्मात्मानी आत्मधून एवी छे के बीजा कार्यो एने गमतां नथी.
प२ धर्मात्मा कहे छे के तुं बीजां कार्यो एककोर मुक ने खरी आत्मधून जगाड.
प३ धर्मात्मानी परिणति आत्महित साधवा माटे परम वैराग्यमय वर्ते छे.
प४ धर्मात्माने स्वभावप्रत्ये संवेग ने संसार प्रत्ये निर्वेग छे.
पप धर्मात्मानुं हृदय चैतन्यना रंगे रंगायेलुं ने संसारथी अलिप्त छे.
प६ धर्मात्मा बाह्य प्रतिष्ठामां के जाणपणामां संतुष्ठ थता नथी.
प७ धर्मात्मा कहे छे के आत्माने साधवो होय तो बीजाथी संतुष्ठ थईश मा.
प८ धर्मात्माओना प्रतापे ज आ जगतमां सुख छे.
प९ धर्मात्मा ज्ञानमय भावथी बहार क््यांय पोतानुं कर्तृत्व स्वीकारता नथी.
६० धर्मात्मा निजभावने छोडता नथी, पर भावने ग्रहता नथी.
६१ धर्मात्माने संसार असार लाग्यो छे, एक स्वभाव ज सार लाग्यो छे.