Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
एकली वीतरागता छे, तेमां वच्चे राग नथी. रागने अने ज्ञानने पण खरेखर मात्र
ज्ञेय–ज्ञायकपणुं छे. आवा ज्ञायकस्वभावी आत्माने ओळखतां, पर साथेनी एकताबुद्धि
तूटीने वीतरागता थाय छे ने सर्वज्ञता खीली जाय छे; त्यां आत्मा संपूर्ण ज्ञाता थाय छे
ने सर्व पदार्थो तेना ज्ञानमां ज्ञेय थाय छे.
मोक्षमार्गभूत शुद्धात्मप्रवृत्ति करता थका आचार्यदेव कहे छे के:– “हुं स्वभावथी
ज्ञायक ज छुं; केवळ ज्ञायक होवाथी मारे विश्वनी साथे पण सहज ज्ञेयज्ञायकलक्षण संबंध
ज छे, परंतु बीजा स्वस्वामी–लक्षणादि संबंधो नथी; तेथी मारे कोई प्रत्ये ममत्व नथी,
सर्वत्र निर्ममत्व ज छे”
जुओ, ज्ञायकस्वभावी आत्माने पर साथे मात्र ज्ञेयज्ञायक संबंध छे–एवा
निर्णयपूर्वक शुद्धात्मामां प्रवृत्तिथी मोक्षमार्ग थाय छे; परंतु ए सिवाय परनी साथे
बीजो कोई संबंध माने ते जीवने शुद्धात्मामां प्रवृत्ति थती नथी एटले वीतरागता के
मोक्षमार्ग थतो नथी. जेने पर साथे फक्त ज्ञेयज्ञायक संबंध ज छे, एवा ज्ञायकस्वभावी
आत्मानो जे निर्णय करे छे ते जीव तेमां प्रवृत्ति वडे मोहने उखेडी नांखीने केवळज्ञानी
सर्वज्ञ थाय छे.
प्रश्न:– सर्वज्ञ ते ज्ञाता, ने जगत आखुं ज्ञेय; तो त्यां ज्ञेयअनुसार ज्ञान छे के ज्ञान
अनुसार ज्ञेय छे?
उत्तर:– सर्वज्ञनुं ज्ञानपरिणमन अने जगतना पदार्थोनुं ज्ञेयपरिणमन, ए बंने स्वतंत्र
होवा छतां, बंनेना ज्ञेय–ज्ञायक संबंधनो एवो मेळ छे के जेवुं सर्वज्ञना ज्ञानमां
जणायुं छे तेवुं ज पदार्थनुं परिणमन थाय छे, ने जेवुं पदार्थनुं त्रणकाळनुं
परिणमन छे तेवुं ज सर्वज्ञज्ञानमां जणाय छे; एकबीजाथी विरुद्धता नथी.
केवळज्ञानमां जणाय कंईक ने पदार्थो परिणमे बीजी रीते–एम बने तो तो
केवळज्ञान खोटुं पडे!–अने पदार्थो परिणमे एक रीते ने ज्ञान तेने जाणे बीजी
रीते–तोपण ज्ञान खोटुं पडे; एम थतां तेने पदार्थो साथे ज्ञेय–ज्ञायकपणुं पण
क्यां रह्युं? माटे स्वतंत्रता होवा छतां एवुं ज्ञेय–ज्ञायकपणुं छे के जेवुं ज्ञेयोमां
परिणमन छे ज्ञानमां तेवुं ज जणाय छे, अने ज्ञान जेवुं जाणे छे ज्ञेयोमां तेवुं ज
परिणमन थाय छे, अन्यथा थतुं नथी. आवा ज्ञान–ज्ञेयस्वभावनो निर्णय ते
वीतरागतानुं कारण छे.