ज्ञेय–ज्ञायकपणुं छे. आवा ज्ञायकस्वभावी आत्माने ओळखतां, पर साथेनी एकताबुद्धि
तूटीने वीतरागता थाय छे ने सर्वज्ञता खीली जाय छे; त्यां आत्मा संपूर्ण ज्ञाता थाय छे
ने सर्व पदार्थो तेना ज्ञानमां ज्ञेय थाय छे.
ज छे, परंतु बीजा स्वस्वामी–लक्षणादि संबंधो नथी; तेथी मारे कोई प्रत्ये ममत्व नथी,
सर्वत्र निर्ममत्व ज छे”
बीजो कोई संबंध माने ते जीवने शुद्धात्मामां प्रवृत्ति थती नथी एटले वीतरागता के
मोक्षमार्ग थतो नथी. जेने पर साथे फक्त ज्ञेयज्ञायक संबंध ज छे, एवा ज्ञायकस्वभावी
आत्मानो जे निर्णय करे छे ते जीव तेमां प्रवृत्ति वडे मोहने उखेडी नांखीने केवळज्ञानी
सर्वज्ञ थाय छे.
जणायुं छे तेवुं ज पदार्थनुं परिणमन थाय छे, ने जेवुं पदार्थनुं त्रणकाळनुं
परिणमन छे तेवुं ज सर्वज्ञज्ञानमां जणाय छे; एकबीजाथी विरुद्धता नथी.
केवळज्ञानमां जणाय कंईक ने पदार्थो परिणमे बीजी रीते–एम बने तो तो
केवळज्ञान खोटुं पडे!–अने पदार्थो परिणमे एक रीते ने ज्ञान तेने जाणे बीजी
रीते–तोपण ज्ञान खोटुं पडे; एम थतां तेने पदार्थो साथे ज्ञेय–ज्ञायकपणुं पण
क्यां रह्युं? माटे स्वतंत्रता होवा छतां एवुं ज्ञेय–ज्ञायकपणुं छे के जेवुं ज्ञेयोमां
परिणमन छे ज्ञानमां तेवुं ज जणाय छे, अने ज्ञान जेवुं जाणे छे ज्ञेयोमां तेवुं ज
परिणमन थाय छे, अन्यथा थतुं नथी. आवा ज्ञान–ज्ञेयस्वभावनो निर्णय ते
वीतरागतानुं कारण छे.