Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ७ :
वीतरागी
ज्ञेय–ज्ञायक संबंध
(ज्यारे सर्वज्ञस्वभावनुं ऊंडुं घोलन चालतुं हतुं त्यारे पोष सुद बीजे
रात्रिचर्चामां गुरुदेवना हृदयमांथी सहेजे नीचेना भावो नीकळ्‌या.....)
आत्मा ज्ञानस्वभाव छे. आत्माने पर पदार्थोनी साथे मात्र ज्ञेयज्ञायकपणानो
संबंध छे. आ ज्ञेयज्ञायकपणानो संबंध ए वीतरागी संबंध छे. आत्मा ज्ञातापणे जाणे,
ने पदार्थो ज्ञेयपणे जणाय,–एवो वीतरागी ज्ञाताज्ञेयसंबंध छे; आ सिवाय परमार्थे
बीजो कोई संबंध आत्माने पर साथे नथी. आथी विशेष संबंध माने तो ते जीव राग–
द्वेष–मोहथी दुःखी छे.
* अनुकूळ संयोगो आत्माने सुख आपे ने आत्मा तेमांथी सुख ल्ये–एवो सुख
देवा–लेवानो संबंध पर साथे आत्माने नथी; मात्र–ज्ञेयज्ञायक संबंध छे.
* प्रतिकूळ संयोगो आत्माने दुःख द्ये ने आत्मा तेनाथी दुःखी थाय–एवो दुःख
देवा–लेेवानो संबंध पण पर साथे आत्माने नथी; मात्र ज्ञेय ज्ञायक संबंध छे. ज्ञेय–
ज्ञायक संबंधमां आ पदार्थ अनुकूळ ने आ पदार्थ प्रतिकूळ–एवा भेद नथी. ज्ञानप्रत्ये
बधा पदार्थो समानपणे ज्ञेय छे.
* आठ कर्मो जीवने विकार करावे ने आत्मा तेमने लीधे विकारी थाय एवो
संबंध आत्माने पर साथे नथी, मात्र ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे.
* परद्रव्य कर्ता थईने आत्मानुं कार्य करे, अथवा आत्मा कर्ता थईने पर द्रव्यनुं
कार्य करे एवो कर्ताकर्मपणानो संबंध आत्माने पर साथे नथी; मात्र ज्ञेयज्ञायक संबंध छे.
परवस्तु आत्माने ज्ञान आपे, ने आत्मा परवस्तुमांथी ज्ञान ल्ये एवो संबंध
पण आत्माने पर साथे नथी आत्मा स्वयं ज्ञानरूप परिणमतो ज्ञेयोने जाणे छे.
जाणवामां आत्मानुं कार्यक्षेत्र पुरुं थाय छे ने ज्ञेय थवामां परनुं कार्यक्षेत्र पूरुं थाय छे.
एथी आगळ वधीने ज्ञान ने ज्ञेय एकबीजामां कांई मदद असर करे एम बनतुं नथी.
बस, ज्ञेयज्ञायकसंबंधमां