घूंटता घूंटता तारा निर्णयमां एम आवे
के अहो! हुंं ज स्वयं परिपूर्ण ज्ञान–
अंतर्मुख थतां प्रत्यक्ष स्वसंवेदनवडे
आत्मअनुभव थाय छे, ते सम्यग्दर्शन
पंथे चडयो ने वीरना मार्गे वळ्यो.
Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).
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