: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ५५ :
उत्तर:– श्रीकृष्ण आपणा नेमिनाथतीर्थंकरना पीतराई भाई हता; तेओ
अत्यारे चोथा गुणस्थानमां छे, ने सम्यग्दर्शनवडे आत्मानी आराधना करी रह्या छे
ने हवे पछीना भवमां तेओ भरतक्षेत्रमां तीर्थंकर थईने मोक्षमां पधारशे–ते
भावितीर्थंकरने नमस्कार हो.
दीपक जैन दिल्ही (सभ्य नं. ११७)
प्रश्न:– आपणे नमस्कारमंत्रमां पहेलां अरिहंत भगवानने केम नमस्कार
करीए छीए? सिद्धभगवानने पहेलां केम नथी करता?
उत्तर:– अरिहंतदेव हजी सदेहे मनुष्यपणे बिराजमान छे अने दिव्यध्वनि
वगेरे द्वारा विशेष उपकार करे छे, तेथी तेमने नमस्कारमंत्रमां प्रथम नमस्कार कर्या
छे. आम छतां बधे ठेकाणे आवो ज क्रम होवो जोईए एवो कोई नियम नथी.
समयसारमां कुंदकुंदस्वामीए सिद्धभगवानने नमस्कार करीने शरूआत करी छे.
षट्खंडागम पुस्तक ८ मां वीरसेनस्वामीए पहेलां साधुने, पछी उपाध्यायने, पछी
आचार्यने, पछी अरिहंतने अने पछी सिद्धने–ए रीते नमस्कार कर्या छे.
पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी वगेरे गमे ते क्रमथी पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार करी
शकाय छे, तेमां कोई दोष नथी.
ललित जैन (स. नं. १६९) जोरावरनगरथी लखे छे के–
आत्मधर्म हुं हंमेश वांचुं छुं, शैली अलौकिक छे, वांचतां जाणे एम लागे छे
के पू. गुरुदेवनुं प्रवचन प्रत्यक्ष सांभळीए छीए.
प्रश्न:– वाच्य–वाचक तथा द्योत्य–द्योतक संबंध ते बंनेमां शुं तफावत?
उत्तर:– सामान्यपणे बंने समान अर्थमां वपराय छे. (बालविभागना
नानकडा सभ्योने आवा प्रश्नो अघरा लागे, बधा बाळकोने आनंदथी समजाय–
तेवा प्रश्नो उपर विशेष लक्ष आपीशुं.)
दामोदर हंसराज जैन (अमदावाद) लखे छे के बालविभाग वांची घणो
आनंद थयो छे. आपे आत्मधर्ममां बालविभाग खोल्यो तेथी बाळको खूब ज
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