Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २४९२ आत्मधर्म : ५७ :
उत्तर:– क्षीरसमुद्रनुं जळ त्रस जीवोथी रहित होय छे; तेमां जलकायिक एकेन्द्रिय
जीवो होय छे.
दीपक जैन दिल्ही (सभ्य नं. ११७)
तमे एक वात लखी ते अमने बहु गमी; तमे लखो छो के–‘भगवानना
कल्याणक दिवसे बहु आनंद थाय छे, ते दिवसे ते भगवाननी पूजा अने आरति करुं छुं.
तेमज सवारे ते भगवाननुं नाम लईने मारा पू. बा मने जगाडे छे.”–तमने आवा
बा मळ्‌या ते बदल तमे भाग्यशाळी छो. भारतनी बधी माताओ पोतानां बाळकोने
आवा मजाना संस्कार आपे तो केवुं सारूं!
तमे माटी, घडो ने कुंभारनो प्रश्न पूछयो, परंतु–भाईश्री, माटी मांथी घडो बने
के न बने तेनुं आपणे काम नथी, आपणे तो आत्मामांथी परमात्मा बनवानुं काम छे.
आत्मामांथी परमात्मा केम थवाय ने तेमां केवा देव–गुरु निमित्त होय ते आपणे
जाणवानुं छे. दिल्हीमां महावीरजयंति धामधूमथी उजवाय छे ते समाचार तथा ते
दिवसनी तमारी भावना जाणी.–धन्यवाद!
अशोक जैन (जामनगर) उत्साह व्यक्त करतां लखे छे के:–
आवा सरस विचारो हुं ‘आत्मधर्म’ मां वांची घणो खुशी थयो.....तमे बाळकोने
आगळ वधारवा केटली तमन्नाथी काम करो छो! आ जोई अमने बधाने खूबज आनंद
थयो छे. ने आत्मधर्ममां आटला बधा बाळकोनो उत्साह जोईने हुं पण बालविभागमां
नाम लखावुं छुं. (भाईश्री, तमे वार्ता मोकलवा जणाव्युं तो बे त्रण महिना पछी
मोकलो तो सारूं; हमणां तो बालविभागमां बहारनुं लेवानो खास अवकाश नथी.)
जामनगरना एक भाई लखे छे–
“हुं बालविभागमां ‘भरती’ थाउं छुं......मारुं नाम ‘आत्मधर्म’ मां भरती
करशे” भाईश्री, आपणो बालविभाग ए कांई लश्कर नथी के तेमां भरती करवानुं
होय. हमणां तमारा गामने लश्करी उथलपाथलनो अनुभव थई गयो तेथी लश्करनी
जेम तमे पण ‘भरती’ थवानी भाषा वापरी लागे छे! आत्मधर्मना बालविभागना
सभ्योमां आपनुं नाम दाखल कर्युं छे.
भरत एच. जैन–मुंबईथी लखे छे के–