Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५८ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
अमे कोलेजमां होवा छतां बालविभागना प्रश्नोतरमां खूब रस पडे छे.” भाईश्री,
आपनी जेवा कोलेजियन बंधुओ जैन–तत्त्वज्ञानमां रस ल्ये ने बालविभागना सभ्य
थाय तेने अमे खुब ज प्रेमथी आवकारीए छीए. तमारा बधा कोलेजमित्रोनेय सभ्य
बनावी दो.
दीपक अने राजेन्द्र जैन वडोदरा
तमे लखो छो के मारे भगवान थवुं छे ने रोज सवारमां भगवानना दर्शन
करीने पछी बीजा काम करशुं. तथा सोनगढमां अमने घणी ज मजा पडी भैया! तमारी
भावना बदल धन्यवाद! सोनगढमां तो कोने मझा न पडे? सौने मजा आवे; –केमके
“ज्यां ज्ञानी वसे त्यां सौने गमे.”
प्रश्न:– रावणनुं नाम ‘दशानन’ तथा ‘रावण’ शाथी पड्युं?
उत्तर:– ‘दशानन’ एटले दश मस्तकवाळो; रावण नव मणिवाळो एवो उतम
हार पहेरतो के तेमां तेना मुखना नव प्रतिबिंब देखाता, तथा दशमुं मूळ मस्तक, ए
रीते दश मस्तक देखावाने कारणे तेने ‘दशानन’ कह्यो. रावणने माथुं तो एक ज हतुं,
पण ते महान विद्याधर होवाथी दश माथा करवा होय तो करी शके खरा; अने एनुं
नाम ‘रावण’ पडवा संबंधमां ‘पद्मपुराण’ मां एम आवे छे के–एकवार ते
कैलासपर्वत उपरथी पसार थयो हतो त्यां वाली मुनिराजना प्रभावथी तेनुं विमान
थंभी गयुं; तेथी क्रोधित थईने तेणे विद्याबळे ते मुनि सहित आखो कैलासपर्वत
उखेडीने दरियामां फेंकी देवानी चेष्टा करी. पर्वत नीचे जईने पर्वतने डगाववा लाग्यो
त्यां कैलास पर भरत चक्रवर्तीए बंधावेला रत्नमय जिनमंदिरोनी रक्षाना विकल्पथी
वाली मुनिए अंगुठा वडे पर्वतने दबाव्यो, त्यां पर्वत नीचे रावण पण दबायो ने रुदन
करवा लाग्यो तेथी तेनुं नाम रावण पड्युं! पछी पोतानी भूलना पश्चात्तापथी रावणे
क्षमा मांगी ने कैलास उपरना जिनालयमां जिनेन्द्रदेवनी घणी ज भक्ति करी.
प्रश्न:– रावण सीताजीने हरी गयो त्यारे सीताजीनी शक्ति क््यां गई?
उत्तर:– रावणे सीताजीनुं हरण कर्युं ते प्रसंगनुं वर्णन पण जुदी जुदी शैलिथी
जोवामां आवे छे. महापुराणमां एम आवे छे के रावणे ज्यारे सीतानुं हरण कर्युं त्यारे
तेणे रामनुं रूप धारण कर्युं हतुं, एटले सीताने खबर न हती के आ राम नथी पण रावण
छे. वळी रावण प्रतिवासुदेव (अर्धचक्रवर्ती) हतो एटले लक्ष्मण–वासुदेव सिवाय बीजुं
कोई तेने जीती न शके. रावणनुं मृत्यु लक्ष्मणना हाथे थयुं हतुं, रामना हाथे नहि.