Atmadharma magazine - Ank 271
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ६२ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९२
बाल बंधुओ, निशाळनी परीक्षाओ पूरी थई ने रजा पडी.....रजामां मजा आवशे–
पण रजानो थोडोक उपयोग धार्मिक वांचनमां पण जरूर करजो. अहीं नवा प्रश्नो पूछया छे.
जवाब पोताना ज हस्ताक्षरमां लखजो; सभ्य नंबर लखजो.
प्र (१) मोक्ष पामवा माटे आपणी पासे
क्या क्या त्रण रत्नो होवा जोईए?
प्र (२) नीचेनी वस्तुओमांथी कई कई
वस्तुओ जीवमां होय? ने कई अजीवमां
होय? ते जुदी पाडो–ज्ञान, सुख, राग,
दुःख, शब्द, रोग शरीर अस्तित्वगुण.
प्र (३) नमस्कार–मंत्रमां देव केटला ने
गुरु केटला?
प्र (४) नीचेना त्रण वाक््योमां खाली
जग्या छे त्यां फकत एक अक्षर लखवानो
छे.–
१ धर्मवडे–र्मनो नाश थाय छे.
२ परमात्मामां परमा–नथी.
३ मो–ना नाशवडे मोक्ष पमाय छे.
आ अंकनो कोयडो:
जैनशासनमां वीरप्रभु पछी थयेला एक
महान संतने शोधी काढो–जेनुं चार
अक्षरनुं नाम छे; जेमणे मोटा मोटा
शास्त्रो रच्यां छे;
एमना नामना छेल्ला त्रण अक्षर
सिद्धप्रभुमां नथी; पण एना नामना चारे
अक्षरनो अर्थ सिद्धप्रभु थाय छे; बीजो
अने चोथो अक्षर सरखा छे. छेल्ला बे
अक्षर लंकामां छे.
अक्षयत्रीजनी वार्ता
अक्षयत्रीज ए वर्षीतपना पारणा
तरीके प्रसिद्ध छे; बंधुओ, तेना
ईतिहासनी तमने खबर हशे. भगवान
ऋषभदेव मुनि थया त्यार पहेलां आपणा
आ भरतक्षेत्रमां लाखो करोडो–असंख्यात
वर्षो सुधी कोई मुनि न हता, ने मुनिने
आहारदान केवी विधिथी देवाय तेनी
कोईने खबर न हती.
ऋषभमुनिराजे छ महिना सुधी तो
उपवास करीने आत्मचिंतन कर्युं;
त्यारपछी आहार माटे गाममां पधारता,
पण विधिपूर्वक आहारनो योग न बनतो,
तेथी पाछा वनमां जई आत्मध्यान करता.
एम करतां