आ विभागनो मोटो भाग आपणा बाल–सभ्योए ज रोकी लीधो छे. अने
बाळकोना हृदयमां आ रीते धार्मिक तरंगो विकसे–ते बहु सारी वात छे.
करवा सोनगढ जवुं छे–तो अमने क््यारे तेडी जशो?
थाय छे. धर्मात्मा जीव स्वर्गमां पण धर्मनी प्रभावना करता होय छे, ने अनेक जीवोने
सम्यक्त्व पमाडता होय छे. बाकी तो पंचमकाळमां जेम मनःपर्ययज्ञान; क्षायिक
सम्यक्त्व वगेरेनो अभाव थयो तेम देवोनुं आगमन वगेरे पण घटतुं गयुं. भले देवोनुं
आगमन न देखाय तो पण आपणे आपणुं हित साधी लेवा पूरतो महान प्रभावना
योग धर्मात्माओना प्रतापे अत्यारे वर्ती ज रह्या छे. धर्मात्मा ज्यां बिराजता होय त्यां
तेमना अष्टांग–किरणो वडे धर्मनी जाहोजलाली वर्ते छे ने जीवो पोतानुं हित साधे छे.
भुलावी देशे.
छे. वांचतां जाणे एम लागे छे के गुरुदेवनुं प्रत्यक्ष प्रवचन सांभळुं छुं, ने गुरुदेव मारा
हृदयमां वसे छे. ‘दर्शनकथा’ पुस्तक में वाच्युं छे ने बीजा बाळकोने पण वांचवा आपुं छुं.