Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ३९ :
पृ...थ्वी...नी प्र...द...क्षि...णा

[
आधुनिकविज्ञान साथे जैन भूमितिनी संधि कया प्रकारे छे ते संबंधी प्रकाश
पाडतुं आ प्रकरण विज्ञानयुगना अभ्यासीओने उपयोगी थशे. –सं.]
जयश्रीबेन जैन.....(रांची) ना नीचे मुजब बे प्रश्नो आत्मधर्मना
बालविभागमां आव्या हता–
(१) ज्यारे सूर्य अने चंद्र ए देवोना विमान छे तो ए केम गोळाकारमां चमके
छे? विमानना आकारमां केम नहीं?
(२) एम कहेवामां आवे छे के पृथ्वी समतल छे अने बिलकुल दडा जेवी नथी,
तो ‘गेगेरीन’ आदि वैज्ञानिको एनी परिक्रमा केवी रीते करी शक््या?–जेमां एमणे
पृथ्वीना अनेक फोटा पण लीधा छे!
आ बंने प्रश्नना विगतवार उत्तर मुंबईथी भाईश्री विमलचंदजी जैन B. Sc.
मारफत आवेल छे, ते तेमना आभार साथे अहीं आपीए छीए; साथे चित्रो पण
होवाथी आ विषय सुगमताथी समजी शकाशे.
(१) (विमाननो अर्थ देवोनां रहेठाण; तेनो आकार अत्यारना एरोप्लेन–
विमान जेवो ज होवो जोईए एवुं कांई नथी. विविध अनेक आकारना विमान संभवे
छे.) सूर्य–चंद्रना विमान अर्धगोळ छे अर्थात् ते अर्घागोळाना आकारे छे. आ भूमंडळ
(पृथ्वी) उपरथी आपणने सूर्य–चंद्रनो जे नीचेनो भाग देखाय छे, ते अर्धगोळाकार
छे; ने उपरनो भाग थाळी जेवो गोळ छे. (जुओ चित्र) ज्योतिषी देवो उपरना
भागमां निवास करे छे.




(२) (जंबुद्वीपनुं चित्र पाछळ छे ते जुओ) जंबुद्वीपना दक्षिण भागमां
भरतक्षेत्र नामनो रमणीय देश छे. तेमां एक आर्यखंड ने पांच म्लेच्छखंड एम कूल छ
भाग छे.