Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९२ आत्मधर्म : ४७ :
पण एना पहेला बे अक्षर भगवान पासे नथी;
एना छेल्ला बे अक्षरमां थांभलो समाई जाय छे.
एनो पहेलो अक्षर तो आपणने बहु ज गमे;
एने देखीने आनंद थाय.....
ए वस्तु सोनगढमां मळे पण मुंबईमां न मळे.....
सोनगढ आवो तो गाडीमां बेठा बेठा पण देखाय!
–ए वस्तु कई!
(बाळको, तमारे जवाब साथे प्रश्नो लखवानी जरूर नथी, मात्र जवाब ज लखजो.
सभ्य नंबर जरूर लखजो. चोवीस तीर्थंकरोना नाम तथा नमस्कारमंत्र मोढे करी लेजो.)
गया अंकना प्रश्नोना जवाब
(१) प्रश्न :– मोक्ष पामवा माटे आपणी पासे कया क््यां त्रण रत्नो होवा जोईए?
उत्तर :– सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ए त्रण रत्नोवडे मोक्ष पमाय छे.
(२) प्रश्न :– नीचेनी वस्तुओमांथी कई वस्तुओ जीवमां ने कई अजीवमां, –ते जुदी पाडो.
उत्तर :– ज्ञान, सुख, राग, दुःख ते जीवमां;
शब्द, रोग, शरीर ते अजीवमां,
अस्तित्वगुण जीव ने अजीव बनेमां
(३) प्रश्न :– नमस्कार मंत्रमां देव केटला ने गुरु केटला?
उत्तर :– अरिहंत ने सिद्ध ए बे देव; आचार्य, उपाध्याय, साधु ए त्रण गुरु.
(४) प्रश्न :– नीचेना त्रण वाक््योमां खाली जग्या छे त्यां फकत एक अक्षर
लखवानो छे–
१ धर्मवडे–र्मनो नाश थाय छे. (क)
२ परमात्मामां परमा–नथी (णु)
३ मो–ना नाश वडे मोक्ष पमाय छे. (ह)
उत्तर :– धर्मवडे कर्मनो नाश थाय छे.
परमात्मामां परमाणु नथी.
मोहना नाश वडे मोक्ष पमाय छे.
केटलाक सभ्योए “परमात्मा परमाद नथी” एम जवाब लखेल छे. ते
भावअपेक्षाए साचुं छे, परंतु भाषा अपेक्षाए अहीं परमाणु शब्द बंध बेसे छे.)