Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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“पूर्वजन्म संस्कार ते......जीव नित्यता त्यांय”
वैशाख सुद बीजना प्रवचन पछी पू. गुरुदेव “राजुल” नो
परिचय आपी रह्या छे: चित्रमां पांच वर्षनी राजुल, पू. गुरुदेव अने
पू. बेनश्रीबेननी वच्चे ऊभेली नजरे पडे छे. गुरुदेव कहे छे के आ
राजुलने अढी वर्षनी उंमरे पोताना पूर्वजन्मनुं ज्ञान थयुं छे के पूर्व
भवे हुं जुनागढमां गीता हती. पोताना पूर्वभवना (गीताना) माता–
पिता अत्यारे जुनागढमां छे तेमने आ राजुले ओळखी काढया. वगेरे
हकीकतो पछी कह्युं के आ राजुलने तो आ ज क्षेत्र साथेनो संबंध एटले
तेना पूरावा बतावी शकाय, परंतु बेनने तो आत्माना ज्ञान सहित
विदेहक्षेत्र वगेरेना अनेक भवनुं ज्ञान छे, पण ते अहींना जीवोने कई
रीते बतावी शकाय? ए तो अंतरना पूरावाथी सिद्ध थई गयेली वात
छे. (विगेरे घणी घणी वात गुरुदेवे प्रमोदथी करी हती.)