Atmadharma magazine - Ank 272
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARM Regd. No. 182
हैयामां ज्यारे मुनिजीवननी मधुरी उर्मीओ जागे छे–
[वैशाख सुद बीज–प्रवचन पछीनुं द्रश्य]
वन–जंगलना निर्जरा वातावरणमां एकला विचरती वखते
गुरुदेवने अवारनवार मुनिवरोनां दर्शनना कोड जागे छे....अहा, कोई
दिगंबर संतमुनि अचानक आकाशमांथी ऊतरीने दर्शन आपे तो केवुं
सारूं? एमना मुखथी छूटती अध्यात्मनी धारा सांभळीए, ने एमना
चरणने भक्तिथी सेवीए, अहा, विदेहमां तो घणा मुनिओ
छे....विदेहना कोई मुनिराज आकाशमार्गे पधारीने दर्शन आपो.
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श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक:– अनंतराय हरिलाल शेठ: आनंद प्रिन्टींग प्रेस: भावनगर.