Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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आवते अंके
ऋषभदेवनो जीव (वज्रजंघ) तथा श्रेयांसकुमारनो जीव (श्रीमती)–ए बंने मुनिवरोने
आहारदान करे छे ने सिंह–वानर–भूंड ने नोळियो–ए चारे जीवो तेनुं अनुमोदन करे छे. एनुं
वर्णन आपणे आ अंकनी कथामां वांचीशुं, पछी ते छए जीवो भोगभूमिमां उपज्या छे ने त्यां
मुनिराजना उपदेशथी छए जीवो सम्यक्त्वने ग्रहण करे छे. तेनुं भावभीनुं जे द्रश्य आ चित्रमां
देखाय छे ते संबंधी कथा आवता अंकमां आपणे वांचीशुं. मुनिराजद्वारा छए जीवोने सम्यक्त्व–
प्राप्तिनुं द्रश्य केवुं मजानुं छे! ए जोतां आपणनेय ए लेवानुं मन थई जाय छे.
मोटो मोक्षमार्गी......ने नानो मोक्षमार्गी
मोक्षमार्गनो मोटो भाग मुनिवरो पासे छे. गृहस्थ धर्मात्मा पासे मोक्षमार्गनो
नानो भाग छे. भले नानो भाग पण तेनी जात तो मुनिराजना मोक्षमार्ग जेवी ज छे.
श्रावकधर्मीने पण मोक्षमार्गनो अंश होय छे.
कोई कहे के मोक्षमार्ग मुनिने ज होय ने गृहस्थ–श्रावकने जरापण मोक्षमार्ग न
होय–तो तेने खरेखर मोक्षमार्गना स्वरूपनी खबर नथी ने श्रावकधर्मात्मानी दशाने
पण ते ओळखतो नथी. अव्रती गृहस्थने पण मोक्षमार्गनो अंश वर्त छे–ते पण क््यारेक
उपयोगने अंदरमां एकाग्र करीने निर्विकल्प स्वानुभवना महा आनंदने वेदी ल्ये छे.
मुनिने तो चैतन्यस्वरूपमां घणी लीनता छे. मुनि मोटा मोक्षमार्गी छे, ने गृहस्थी
सम्यग्द्रष्टि नानो मोक्षमार्गी छे–पण मोक्षमार्ग तो बंनेने छे; बंने मोक्षना साधक छे.
(आवता अंकमां प्रगट थनार सुंदर प्रवचनमांथी)