Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २८: आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
संपादकनो पत्र:
धर्मवत्सल बालबंधुओ! रजा पूरी थई, स्कूलो ने कोलेजो शरू थई.....पण एनां भणतरनी
साथे धर्मनां भणतरने न भूलशो....स्कूलनुं भणतर रोज दश कलाक भणो तो धर्मनुं भणतर रोज
दश मिनिट तो जरूर भणजो....एथी जीवनमां घणा उत्तम संस्कारोनुं सींचन थशे. केरीनी मोसम
पण हमणां गई...मने थयुं के आपणा बालसभ्योने पण केरी खवडावुं, तेथी असल मजाना
आंबानुं एक झाड वाव्युं छे, तेनां फळ पण पाकवा आव्या छे. थोडा वखतमां तैयार थशे एटले
आखुंय झाड तमने मोकली दईश, तेनी केरी तमने बहु ज भावशे. तोड तोडीने खूब खाजो.
आपणा बाल–विभागना सभ्यो एक हजार थई जवानी तैयारी छे. आपणा बधा बालसभ्योनुं
जाणे के एक धार्मिक कुटुम्ब ज रचायुं होय एवा वात्सल्यभाव सौने जागे छे.
बालविभागना नवा प्रश्नो
(प्र. १) नव तत्त्वनां नाम–
१– जीव
२– अजीव
३– पुण्य
४– पाप.
प– आस्रव
६– बंध
७– संवर
८– निर्जरा
९– मोक्ष
आ नव तत्त्वनां नाम मोढे करो अने
तेमांथी तमने कया कया तत्त्वो गमे छे ते लखो:
(प्र. २) सौराष्ट्रमांथी एक तीर्थंकर मोक्ष पाम्या
छे, ते कया तीर्थंकर? अने कया पर्वत उपरथी
(प्र –३) नीचेना वाक्योमां भूल छे, ते
सुधारीने फरीथी लखो:–
(१) एक माणसना शरीरमां घणुं
ज्ञान हतुं.
(२) जीवनुं लक्षण शरीर छे.
(३) दुःख शरीरने थाय छे, ने सुख
आत्माने थाय छे.
(कोयडो) आकाशमां चाले छे पण पंखी नथी.
अपार वैभव छे पण वस्त्र नथी.
दुनियाना राजा छे पण मुगट पहेरता
नथी. बोले छे पण मोढुं खोलता नथी.
आपणने बहु गमे छे–ए कोण?
जवाब ता. १० जुलाई सुधीमां लखो:–
सरनामुं:– संपादक आत्मधर्म: