Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 34 of 53

background image
: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
बाळकोने तत्त्वजिज्ञासा
विद्यार्थीओना शिक्षणवर्गमां आवेल अनेक बाळको जिज्ञासाथी
तत्त्वचर्चामां भाग लेता ने कोईकवार प्रश्न पण पूछता. आवी तत्त्वचर्चानो
लाभ बालविभागना बीजा बाळको पण मेळवे एवी भावनाथी एक बाळके
पू. गुरुदेव समक्ष थयेल प्रश्नोत्तर लखी मोकलेल, ते अहीं आपेल छे. (लखाण
साथे ते सभ्यनुं नाम के नंबर लखेला न होवाथी आपी शक््या नथी.)
(१) प्रश्न:– केवळज्ञानी भगवानने केवळज्ञान थाय छे ने आपणने केम थतुं
नथी? (बाळकोमां नानपणथी ज केवळज्ञाननी आस्तिकताना ने तेनी भावनाना
संस्कार केवा पोषाय छे ते प्रश्नमां देखाय छे.)
उत्तर:– ते प्रकारनो पुरुषार्थ पोते नथी करतो माटे; पहेलां तो आत्मामां
केवळज्ञान थवानी ताकात छे एवी श्रद्धा ने ओळखाण करवी जोईए; एवी श्रद्धा जे करे
तेने अल्पकाळमां केवळज्ञान जरूर थाय.
(२) प्रश्न– अमारा जेवा नानी उंमरना बाळकोने सम्यग्दर्शन केम थाय?
उत्तर:– बधा आत्मा अनादिना छे एटले खरेखर आत्मा मोटो के नानो नथी.
मोटी उमरनाने जे करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे, नानी उमरनाने पण ते ज करवाथी
सम्यग्दर्शन थाय छे. नाना के मोटा जे कोई जीव आत्मानो परम प्रेम प्रगट करीने
अंतर्मुखद्रष्टि करे तेने सम्यग्दर्शन थाय छे. बधाने माटे सम्यग्दर्शननो एक ज उपाय छे.
(३) प्रश्न:– जीवने तात्कालिक आनंद केम थाय?
उत्तर:– आनंदना दरियामां डुबकी मारे के तरत! आ आत्मा आनंदस्वभावथी
भरपूर छे तेने ओळखीने ज्यारे ज्यारे आत्मा तेमां एकाग्र थाय के तत्क्षणे तेने
अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय छे. (आ क्षणे आपणे आत्मामां उपयोग मुकीए
तो अत्यारे ज आपणने आनंद थाय.) एवा आनंदने अनुभववा माटे पहेलां तेनी
लगनी लगाडीने खूब अंतरमां अभ्यास करवो जोईए.
(४) प्रश्न:– चोथा गुणस्थाने निर्विकल्पदशा वखते आत्मामां शुं थाय छे?
उत्तर:– आत्माना परम आनंदनो अनुभव थाय छे.