सवारमां शांतिनाथ भगवाननी स्वागत–यात्रा शरू थई हती ने दिगंबर जिनमंदिरे
(मधुकुंज, नवरोज क्रोस लेन) आवी हती. राजकोटना श्री प्रमोदभाई दलपतरामना
सुहस्ते प्रभुजीने वेदी उपर बिराजमान कर्या हता. त्यारबाद स्वाध्यायमंदिरनुं उद्घाटन,
तथा जिनवाणीनी स्थापना वगेरे विधि भाईश्री मणिलाल जेठालाल शेठ तथा
प्राणलाल. भाईचंद देसाईना सुहस्ते थई हती. घाटकोपरना अग्रगण्य नागरीको तेमज
मुंबई मुमुक्षुमंडळना घणा भाईओ आ वखते उपस्थित हता ने आ प्रसंगे १८, ०००
मुमुक्षु भाई–बहेनोने घणो हर्षोल्लास थयो हतो. जिनेन्द्रदेवनी मंगल छायामां धर्मवृद्धि
थाय एवी भावना साथे घाटकोपर मुमुक्षुमंडळने वधाई!
ए घटना अत्यंत वैराग्यप्रेरक छे....अरे अनित्यता!! सवारे घेरथी नीकळेलो मानवी
सांजे पाछो जीवतो घरे पहोंचशे के नहि ते पण जेमां नक्की नथी–एवो आ क्षणभंगुर
संसार.....तेमां तारा जीवननो एवो उत्तम सदुपयोग कर के जेथी जीवननी क्षणे क्षण
सफळ थाय. जीवननी एक पळनेय व्यर्थमां न गुमाव.... एकेक पळने महा किंमती जाण
ने आत्महित माटे तेनो उपयोग कर. परिभ्रमणना पंथेथी पाछो वळीने सिद्धिना पंथे
प्रयाण कर.
शुं कुटुंब के परिवारथी वधवापणुं ए नय ग्रहो!
वधवापणुं संसारनुं नरदेहने हारी जवो;
एनो विचार नहीं अहोहो, एक पळ तमने हूवो.