Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : ३३ :
वांचको साथे वातचीत
(जिज्ञासुओना विविध विचारोने व्यक्त करतो पाठकोनो प्रिय विभाग)
कहाननगर सोसायटी (दादर) थी एक कोलेजियन बहेन लखे छे के:–
“बालविभागना सभ्योना आंकडा जोया ने अमने तो तरत ज सभ्य बनवानुं
मन थई गयु हतुं, पण अमने एम हतुं के बालविभाग फकत शाळाना बाळको तथा
१६ वर्षनी नीचेनां बाळको माटे ज छे. पण ज्यारे २७२ नंबरनुं आत्मधर्म जोयुं अने
तेमां कोलेजियन सभ्योनो पत्र वांच्यो, त्यारे अमारी मान्यता खोटी छे एवुं भान
थतां तरत सभ्य थवा माटे पत्र लखवा बेसी गया.
बालविभागमां जे प्रश्नो छे ते पण खूब रसप्रद छे, अमने तेमांथी केटलांय
आवडतां होतां नथी, त्यारे तो एम ज थाय छे के आत्मधर्ममां खूब वर्षोथी आवा
बधा प्रश्नो ने जवाबो आवतां होत तो केवुं सारूं थात! भाई, आवुं पायानुं अने
चोक्कस तेमज शास्त्रीय धार्मिक ज्ञान दरेकने विनामूल्ये आपवा बदल, तेमज अमारामां
रस जगाडवा बदल आपना अमे खुबखुब आभारी छीए.”
वासंतीबेन M.A. ना आ पत्रनी साथे २३ सभ्योए बालविभागमां नाम
लखाव्यां छे–जेमांना केटलाक M.A. मां B.A. मां B.Sc. मां के L.L.B. वगेरेमां
अभ्यास करे छे. आवा कोलेजशिक्षणनी साथे साथे पण धार्मिक शिक्षण माटे तेओ
आटलो बधो रस धरावे छे ते प्रशंसनीय छे. बहेन, तमारा जेवा कोलेजियन भाई–
बहेनो आत्मधर्मना बालविभागना सभ्य बनीने अध्यात्मविद्यामां रस ल्ये तेने अमे
मात्र आपणा बालविभागनुं ज नहि पण जैनसमाजनुं गौरव समजीए छीए. जेम
सोनगढमां संतोनी छायामां वसता प० जेटला कुमारिका बहेनोए विलासीता उपर
आध्यात्मिकतानो विजय सिद्ध करी बताव्यो छे, तेम आपणा जैन कोलेजियनो पण
धार्मिक तत्त्वज्ञानमां रस लईने लौकिक विद्या उपर अध्यात्मविद्यानो विजय सिद्ध करी
बतावो–एम अमे ईच्छीए छीए.
एक उत्साही भाई लखे छे–बालविभाग एटले हजार बाळकोने पोस्टद्वारा शिक्षण
आपती पाठशाळा; धर्म प्रभावनाना उत्कृष्ट निमित्तरूप पू. गुरुदेवना हृदयमांथी सतत
अविरत नीतरता वात्सल्यभावनुं दोहन करी आत्मधर्ममां पीरसो छो तेने माटे खुब
धन्यवाद! बालविभाग शरू करीने धार्मिक शाळा ज शरू करी छे; पण एकमासनुं अंतर