Atmadharma magazine - Ank 273
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 37 of 53

background image
: ३४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
लांबुं पडे छे; पाक्षिक के अठवाडिक थाय ने ते अंतर घटे तो वधारे लाभनुं ने
प्रभावनानुं कारण थाय.
प्रवीणभाई (नं. ३१) भावनगरथी लखे छे के हुं बालविभागनो सभ्य छुं
एटले जिनवरनो सन्तान छुं. ने पूछे छे के–चोथाथी अगियारमा गुणस्थान सुधीमां ज
होय ते क््यो भाव?
उत्तर:– औपशमिकभाव.
भाई, हवे हुं तमने पूछुं छुं के–उदयभावना गुणस्थान केटला? अने क्षायिकभावना
केटला? तथा १ थी १२ गुणस्थानो सुधीमां बधे होय ने पछी न होय ए क््यो भाव?
अमदावादथी श्री रमणभाई लखे छे के–“आत्मधर्मना जेठ मासना अंकमां
पृथ्वीनी प्रदक्षिणा शिर्षक लेख वांच्यो. खुब ज आनंद. आजना विज्ञानप्राधान्य
विषमकाळमां आवा लेखो आध्यात्मिक जगतने–समाजने खुब ज उपयोगी अने
मार्गदर्शक छे, अने जिनवाणीनी श्रद्धा टकाववा माटे उपकारक छे. पुनःपुन: अनुमोदन”
(भाईश्री, आपनी वात साची छे. जैन सिद्धांतअनुसार विश्वनुं स्वरूप शुं छे अने
द्वीप–समुद्रोनी रचना क्या प्रकारे छे–ते संबंधी जाणपणुं आपणा जैन बाळकोने होय ते
आजना युगमां अत्यंत जरूरी छे.
अहीं आ लखतां लखतां सामे ‘जैनमित्र’ मां आ संबंधी थोडुं लखाण आव्युं छे,
ते अहीं आपीए छीए. कभी कभी जैन भाईओंको ऐसा कहते सुना गया है कि अगर
आजका मानव रोकेट आदि के द्वारा चन्द्रमा पर पहूंच गया तो जैनशास्त्र मिथ्या हो
जायेंगे। परंतु जैनशास्त्र त्रिकाल मिथ्या नहीं हो सकते। चांद पर पहूंच जाना कोई
अचम्भेकी बात नहीं। [मनुष्योंका गमन मध्यलोकमें, मेरुकी ऊंचाई तक संभव है,
जब कि] सूर्य–चन्द्रकी ऊंचाई मेरूपर्वतकी ऊंचाई से कम ही है। चन्द्र सूर्य आगम
के अनुसार सुमेरु पर्वतकी प्रदक्षिणा देते रहते है। मेरूपर्वतके उपर एक बालका
अन्तर छौडकर प्रथम स्वर्ग है, वहां जाना मनुष्योके असंभव है; किन्तु चन्द्र आदि
ज्योतिषी देवोंके विमान तो वहां से बहुत नीचे है। फिर जैनशास्त्रों परसे अपना
श्रद्धान डांवाडोल करना कोई बुद्धिमानी नहीं।
(आधुनिक विज्ञान साथे कदाच मिलान
न थई शके तेथी जैनसिद्धान्तनुं प्रतिपादन करवामां गभरावुं न जोईए, केमके आधुनिक
विज्ञान अधूरुं छे, जैनसिद्धान्त पूर्णतामांथी प्रगटेला छे.)
नवनीत अने विनोद (अमदावाद)–भैया! तमारा भूलायेला सभ्यनंबर शोधी
आप्या छे ४१० अने ४११ छे. हवे फरीने न भूलशो. (अमदावादमां तो आपणा
घणांय बाल–