: ४४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९२
सर्वार्थसिद्धिना देवोनी चर्चा
पू. गुरुदेवना जन्मोत्सव प्रसंगे भजवायेला एक नाटकमां
सर्वार्थसिद्धि देवो परस्पर धर्मचर्चा करे छे एवुं द्रश्य आव्युं हतुं.
ते प्रसंगनी सर्वार्थसिद्धि देवोनी चर्चा अहीं आपे छे. (सं.)
पहेलादेव:– अहो, देवो आपणे सौ भाग्यशाळी छीए, आपणा भवनो किनारो नजीक
आवी गयो छे.
बीजा देव:– हा, आपणे सर्वार्थसिद्धिना बधा ज देवो हवे छेल्लो मनुष्यअवतार धारण
करीने मोक्ष पामशुं.
त्रीजादेव:– अहा, अहीं आपणा सर्वार्थसिद्धि विमानमां बधा ज जीवो साधक छे, बधा
ज जीवो स्वरूपना आराधक छे. अहीं तो जाणे आराधक जीवोनो मेळो
भेगो थयो छे.
चोथा देव:– वाह, आपणा विमानमां कोई मिथ्याद्रष्टि तो नहि ने एक करतां वधारे
भव पण कोईने नहि.
पांचमा देव:– हा, आपणे तो सिद्धलोकना पाडोशी छीए. जेम सिद्धलोक अहिंथी थोडे
ज दूर छे तेम आपणी सिद्धदशा पण थोडीक ज दूर छे.
छठ्ठा देव:– आपणे बधाय देवोए पहेलांना भवमां मुनिमार्ग जोयेलो छे. पूर्वभवे
आपणे सौ चैतन्यना निर्विकल्प अनुभवरूप मुनिदशामां झुलता हता. ए
साधना जराक अधूरी रही गई एटले आ एक अवतार थयो.
सातमा देव:– पहेलांना भवमां आपणामां कोई छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने हतां अने
कोई आठमा, नवमा, दसमा, के अगियारमा गुणस्थाने पण हतां.
आठमा देव:– अने हवे मनुष्य थईने फरी मुनिदशा अंगीकार करशुं ने चैतन्यदशामां
झूलतां झूलतां मोक्षदशाने साधशुं.
पहेला देव:– आपणामांथी केटलाक जीवो तो अहींथी नीकळीने तीर्थंकर थवाना छे; कोई
विदेहमां, कोई भरतमां अने कोई ऐरावतमां थशे, कोई जंबुद्वीपमां, कोई
धातकीखंड द्वीपमां अने कोई पुष्करद्वीपमां तीर्थंकर थशे.