: अषाड : २४९२ आत्मधर्म : ४५ :
बीजा देव:– आपणे बधाय अवधिज्ञानना धारक छीए. मनुष्यलोकमां बनता महान
मंगल प्रसंगो आपणे अहीं बेठा बेठा जाणीए छीए.
त्रीजा देव:– तेत्रीस सागरनुं असंख्य वर्षनुं आपणुं आयुष्य तो मुख्यपणे
स्वानुभवनी तत्त्वचर्चामां ज वीते छे.
चोथा देव:– अहो; चैतन्यनी आराधनामां जीवन वीते ते धन्य छे. स्वानुभवनी चर्चा
करे छे ते पण धन्य छे.
पांचमा देव:– खरेखर मोक्षमार्ग स्वानुभवमां समाय छे. जैन शासन स्वानुभवमां
समाय छे. सुख होय तो ते स्वानुभवमां ज छे.
छठ्ठा देव:– ए मनुष्य अवतार धन्य छे के जेमां स्वानुभवनी पूर्णता करीने मोक्षने
साधीए. अहा, ए स्वानुभवनो अतीन्द्रिय आनंद अद्भुत छे.
सातमा देव:– आपणे ए आनंदनो स्वाद चाख्यो छे. सम्यग्दर्शननो ए महान प्रताप
छे के जे आवो अतीन्द्रिय आनंद आपे छे. जगतमां ते जीवो धन्य छे के
जेओ सम्यग्दर्शन आराधक छे.
आठमा देव:– मनुष्यलोकमां एवा समक्त्वधारी संतो अवारनवार थता ज आवे छे
अने मनुष्यलोकमां अढीद्वीपने पावन करे छे.
अंग्रजी अक्षरोने
गुजरातीमां वांचो
* Cद्धप्रभु Jवा आनंदरसने PO.
* J कोई Cद्ध थया छे तेO भेदVज्ञानथी ज थया छे.
* भेदVज्ञान Vना Kवळज्ञान Kम थाय?
* महाVर प्रभुG मोक्षमां BराJ छे.
* VदेहवाC Cमंधर Gनने Aक लाख वंदन.
– जय जिनेन्द्र