Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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२७३ A
परमात्माना तेडा आव्या छे
जाणे के साक्षात् परमात्माए बोलाव्या होय ने तेमने
मळवा माटे जता होय–तेमां केटलो आह्लाद होय! तेम
स्वभावनी भावनामां साधकने परम आह्लाद छे. एक
सामान्य राजा मळवा माटे बोलावे तोय केवो होंशथी तेने
मळवा जाय छे. अहीं तो भगवान भेटवा बोलावे छे के आव
रे आव......आ आनंदमय चैतन्यधाममां आव! आ चैतन्यना
अनुभवमां एकलो आनंदनो आह्लाद ज भर्यो छे. आवा
परमात्माने भेटवा जतां साधकना अनेरा उल्लासनी शी वात!
शुद्ध आनंदस्वभावनो जे खरेखरो उल्लास ने उमंग
आववो जोईए तेवो उल्लास अज्ञानीने नथी आवतो तेथी ते
बीजे अटकी जाय छे. खरो उल्लास अने उमंग आवे तो
अनुभव थाय ज. आनंद–अमृतथी भरेली पोतानी स्ववस्तु
तेना प्रत्ये असंख्यप्रदेश उल्लसित थतां परिणति परभावथी
पाछी फरी जाय छे, स्वानुभव करे छे; ते स्वानुभवमां तेने
परमात्मानी प्राप्ति छे; अल्पकाळमां ते स्वयं परमात्मा थाय छे.
ए साधकने परमात्माना तेडा आवी गया छे.
(प्रवचनमांथी)
वर्ष: २३ अधिक अंक: वार्षिक लवाजम रूा. चार: वीर सं. २४९२ अधिक श्रावण
तंत्री: जगजीवनदास बावचंद दोशी. संपादक: ब्र. हरिलाल जैन