स्वभावनी भावनामां साधकने परम आह्लाद छे. एक
सामान्य राजा मळवा माटे बोलावे तोय केवो होंशथी तेने
मळवा जाय छे. अहीं तो भगवान भेटवा बोलावे छे के आव
रे आव......आ आनंदमय चैतन्यधाममां आव! आ चैतन्यना
अनुभवमां एकलो आनंदनो आह्लाद ज भर्यो छे. आवा
परमात्माने भेटवा जतां साधकना अनेरा उल्लासनी शी वात!
बीजे अटकी जाय छे. खरो उल्लास अने उमंग आवे तो
अनुभव थाय ज. आनंद–अमृतथी भरेली पोतानी स्ववस्तु
तेना प्रत्ये असंख्यप्रदेश उल्लसित थतां परिणति परभावथी
पाछी फरी जाय छे, स्वानुभव करे छे; ते स्वानुभवमां तेने
परमात्मानी प्राप्ति छे; अल्पकाळमां ते स्वयं परमात्मा थाय छे.
ए साधकने परमात्माना तेडा आवी गया छे.