: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ३३ :
प्रगटतुं तो तेनुं साचुं कारण पोते सेवतो नथी–एम समजी लेवुं. ज्ञानीओ अने शास्त्रो
अंतर्मुख थवानुं कहे छे, ते प्रमाणे जो पोते आत्मरस प्रगट करीने अंतर्मुख थाय तो
एक क्षणमां पोताने सम्यग्दर्शन जरूर थाय. बीजाने शुं थाय छे ते न जोतां पोतामां शुं
थाय छे ते विचारवुं जोईए, अने पोतानी भूल होय ते टाळीने साचो उद्यम करवो
जोईए. जे साचो उद्यम करशे तेने तेनुं फळ जरूर आवशे. (बीजी एक वात)–कदाच
थोडी वार लागे तोपण आत्महितना प्रयत्नमां कंटाळवुं के थाकवुं न जोईए; जिज्ञासाने
पुष्ट करीने सततपणे प्रयत्न चालु राखवो जोईए.
* अत्यारे रामचंद्रजी तथा सीताजी क््यां छे? (नं. २४).
भगवान रामचंद्रजी मोक्षमां छे, सीताजी स्वर्गमां छे.
* रत्नत्रय मेळववानो उपाय शुं? (नं. २४).
परभावनो प्रेम छोडीने निजस्वभावनी आराधना करवाथी रत्नत्रय प्रगटे छे.
अने एवी आराधना माटे आराधक जीवोनो संग ए मुख्य साधन छे.
* लोकाकाश केटलुं मोटुं हशे? (नं. ४६२).
जेटला आपणा आत्मप्रदेशो छे एटला ज लोकाकाशना लोकप्रदेशो छे. एटले
प्रदेश संख्याथी लोकाकाश बराबर आत्मा जेवडुं छे. आपणा आखा भारतदेशने ने
छए खंडने करोडो अबजो गुणा करीए तो तेनाथी पण असंख्यातगणुं मोटुं लोकाकाश
छे. तेनुं माप ३४३ घनराजुप्रमाण छे.
अमारा कोलेज––सभ्यो
(अमारी कोलेजमां दाखल थईने दश अक्षरनी डीग्री मेळवो)
आपणा कोलेजीयन–सभ्य भाईश्री चेतन जैन (फत्तेपुरवाळा) के जेओ
बालविभागमां खूब ज रस लई रह्या छे ने उत्साहपूर्वक सहकार आपी रह्या छे,
तेमनी प्रेरणाथी अमदावादना के. जे. जैन छात्रालयना ४प जेटला विद्यार्थीओ
(जेमां घणा खरा कोलेजीयन छे–) उत्साहथी बालविभागना सभ्य बन्या छे; तेमां
B.A ; M.A. ; B.Sc; तथा L.L.B. ना विद्यार्थीओ पण घणा छे.–पण तेओ बधा
कहे छे के अमे तो बालविभागनी अध्यात्मकोलेजमां अभ्यास करीने एक नवीन
अने लांबी डीग्री प्राप्त करवा मांगीए छीए–के जे डीग्री प्राप्त कर्या पछी बीजी कोई
डीग्री माटे फां–फा मारवा न पडे.–दश अक्षरनी ते लांबी धार्मिक डीग्री आ प्रमाणे
छे– B.H.E.D. V.I.G.Y.A.N. आ डीग्री एवी छे के तेने माटे प्रयत्न करनार
कोई नापास थाय नहि, अने वळी एनो कोर्स मात्र छ महिनानो! कोलेजप्रवेश
बधाने मळे अने फी कांई नहि.