Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
व्याख्यान भरेला छे परंतु ते सांभळवा माटेना मशीनो न होवाथी सांभळी शकता नथी,
एटले लगभग नकामा बनी गया छे. मात्र अढार वर्षमां आ स्थिति–परिवर्तन थयुं.
ज्ञानमां जे वस्तु परिणमी गई होय तेने काळनो घसारो लागे नहि. (टेपरेकर्डमां दिव्यध्वनि
ऊतरी शके के केम ते पण विचारणीय छे.)
छेल्ली महत्त्वनी वात ए छे के ज्ञाननुं साधन ए कोई बाह्य वस्तुओमां नथी, ज्ञाननुं
खरुं साधन पोतानो आत्मा छे. माटे पराश्रित भावना छोडीने आत्मा तरफ वलण करवुं.
* प्र
–आठ वर्षना बाळक केवळज्ञान पामे छे, तो अमारे आत्माने ओळखवा
शुं करवुं? (नं. ६१८)
– जे रस्ते ते बाळक आठ वर्षे केवळज्ञान पामे छे ते ज रस्तो लेवो.
अने जो आ भवमां आत्मज्ञान करीने साथे लई जईशुं तो पछीना भवोमां जन्मथी
ज आत्मज्ञान हशे, –आठ वर्षना थवानी पण राह नहि जोवी पडे.
प्र
– आठ वर्ष करतां नानी उंमरना बाळकने आत्मज्ञान होय?
– जी हा! घणा आराधक जीवो तेमज तीर्थंकरो पूर्वभवमांथी आत्मज्ञान साथे
लईने ज अवतरे छे; तेओ जन्मथी ज आत्मज्ञानी होय छे. हजी चालतां न आवडतुं होय
छतां आत्मज्ञान होय ने मोक्षमार्गमां चालता होय. वाह! ए बाळमहात्मा केवा हशे!
विदेहक्षेत्रमां अत्यारे एवा घणाय नानकडा आत्मज्ञानीओ बाळपणाना खेल खेलता हशे.
आठ वर्ष करतां नानी उंमरमां मुनिपणुं के केवळज्ञान न संभवे, पण आत्मज्ञान संभवे (–ते
पण अत्यारे भरतक्षेत्रमां न संभवे, विदेहक्षेत्रमां संभवे.)
पंचमकाळ शरू थया पहेलां आराधक जीवो भरतक्षे्रत्रमां पण अवतरता; परंतु हवे
पंचमकाळ शरू थई गया पछी आराधक जीवो भरतक्षेत्रमां अवतरता नथी, विदेहक्षेत्रमां ज
अवतरे छे. हा, भरतक्षेत्रना जीवो जन्म्या पछी आराधकपणुं प्रगट करी शके छे.
प्र
–पंचमकाळमां कोई मोक्ष पामी शके?
–हा; चोथाकाळमां जन्म्यो होय एवो जीव पंचमकाळमां पण मोक्ष पामी शके
(जेमके–गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी, जंबुस्वामी;) परंतु पंचमकाळ शरू थया पछी जन्मेलो
कोई जीव ते भवे मोक्ष पामी शके नहि.
*
(नं. ३८प) सुरतनो प्रश्न:– घणा जीवो एक ज वखतना ज्ञानीना समागमथी
सम्यग्दर्शन पामी गया, ने अल्प काळमां केवळज्ञान पण पामी गया,–एना उदाहरण
पुराणोमां छे, (अंजनचोर वगेरे.) तो अमारा जेवा घणा लोको ज्ञानीने अनेक वखत मळे
छे, प्रेमथी उपदेश सांभळे छे ने अध्यात्मशास्त्रो वांचे छे, छतां घणा वर्षथी सम्यग्दर्शन केम
नथी थतुं?
–भाईश्री, साचुं कारण आपे तेने साचुं कार्य प्रगटे एवो नियम छे कार्य नथी