: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ३१ :
उ:– तीर्थंकर भगवान बिराजता होय त्यां समवसरणनी रचना थाय, अने ते
समवसरणमां, गणधरादि सभाजनोनी हाजरीमां ज भगवाननी दिव्यध्वनि छूटे.
तीर्थंकर सिवाय बीजा लाखो केवळीभगवंतो तेरमा गुणस्थाने अरिहंतपणे बिराजी
रह्या छे, तेमां केटलाक मूक (वाणी वगरना) केवळी छे ने केटलाक केवळी भगवंतोने
वाणी होय छे, तेओने पण दिव्यध्वनि होय छे; ते दिव्यध्वनि मुखथी नहि परंतु
शरीरना सर्वांगेथी छूटे छे. ने तेवा केवळीभगवंतोने दिव्य गंधकूटिनी रचना थाय छे,
तेनी शोभा पण समवसरण जेवी दिव्य होय छे. ए बधानुं वर्णन ज्ञानीओनी वाणीमां
ने शास्त्रोमां एटलुं अद्भुत छे के नजरे जोवानुं मन थई जाय छे ने ए नजरे जोईए
त्यारे ज तेनो खरो आनंद आवे, एने नजरे नीहाळनारा घणा जीवो अद्भुत–चैतन्य–
महिमा प्रगट करीने सम्यग्दर्शन पामी जाय छे. केवळज्ञान थया पछी कोई जीव पृथ्वी
उपर विचरे नहि, आकाशमां पांच हजार धनुष ऊंचे ज विचरे.
* प्र
० –स. नं. ७०६ पूछे छे–भगवानना वखतमां टेपरेकोर्डिंगनी तथा फोटा
पाडवानी शोध केम नहि थई होय? ते वखते धुरंधर आचार्यो एवी विद्या जाणता तो
होय; जो टेपरेकोर्डिंग थयुं होत तो आजे आपणे प्रभुनी वाणी प्रत्यक्ष सांभळी शकत!
उ
० –आपनी जिज्ञासानो प्रश्न सारो छे. परंतु, भाईश्री! दिव्यध्वनिना श्रवण
वडे आपणे जे कार्य साधवानुं छे ते कार्य अत्यारे ज्ञानीनां वचनो वडे पण साधी शकाय
छे; केमके ज्ञानीनां वचन ते पण जिनवाणीनो ज अंश छे. दिव्यध्वनिरूपी अमृतना
दरिया वडे जे कार्य साधी शकाय ते कार्य ज्ञानीना वचन रूपी अमृतना एक घूंटडावडे
पण साधी शकाय छे. –अने एटलुं महाभाग्य तो आपणने आजेय मळे ज छे.
बीजी वात ए छे के मशीन वगेरे द्वारा उपदेशना श्रवण करतां ज्ञानीनां
उपदेशनुं सीधुं श्रवण वधु महत्त्वनुं छे.
त्रीजी वात ए छे के मुनिवरो वगेरे विशिष्ट विद्या जाणता होय तो पण
सामान्यपणे तेओ तेनो उपयोग करता नथी, तेओ तो आत्मानी साधनामां मशगुल छे.
चोथी वात ए के, जेने दिव्यध्वनिना सीधा श्रवण जेवुं महाभाग्य अने विशिष्ट
पात्रता होय तेने तो कोई ने कोई प्रकारे दिव्यध्वनिनुं श्रवण मली जाय छे. (–जेमके
कुंदकुंदाचार्यदेवने सीमंधरनाथनी दिव्यध्वनिनुं साक्षात् श्रवण मळ्युं. –वगेरे.)
पांचमी वात–ज्ञाननां निमित्तोनुं टकवुं ते पण जीवोनी योग्यता तथा देश–काळ
अनुसार होय छे. एक दाखलो आपुं–सत्तर–अढार वर्ष पहेलां वायर–रेकोर्डिंग मशीनथी
स्टील–वायरमां गुरुदेवना प्रवचनो पहेलवहेला ऊतर्या, अने घणी होंसथी ते केटलाक
वर्ष सुधी सांभळ्या; आजेय ते वायरना रीलमां