: ४० : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
बालविभागनुं आंबानुं झाड
(चत्रन समजण)
• बाल–बंधुओ; आपणा बालविभागना ‘सभ्यपत्रक’ तरीके ‘आंबानुं झाड’ तमने सौने मळी
गयुं हशे. आ सभ्यपत्रक मढावीने घरमां टांगी राखजो, ने तेमां बतावेला फळनी हंमेशा
भावना भावजो.
• सभ्यपत्रकमां सौथी उपर लख्युं छे–“अमे जिनवरनां सन्तान” एटले के आपणे
जिनवरदेवनी आज्ञामां रहेनारा अने जिनवरना मार्गे चालनारा छीए.–आवी दरेक
सभ्यनीभावना होय.
• बंने बाजु उभेला सभ्यो जैन झंडो फरकावी रह्या छे–जेमां ‘जय जिनेन्द्र’ लखेलुं छे; एटले
जैनधर्मनी प्रभावना माटे सौने उत्साह होय.
• हवे आंबानुं झाड जुओ–केवुं मजानुं झाड छे, ने केवी सरस केरीओ पाकी छे! ते खावानुं मन
थाय छे ने! जुओ, केटलाक सभ्यो (भाई–बेनो) तो ते लेवानो प्रयत्न करी रह्या छे; ने
सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञानरूपी केरी तोडवानी तैयारीमां छे.
• सम्यग्दर्शन ने ज्ञाननी साथे जिनपूजा–स्वाध्याय, भक्ति ने वैराग्य पण छे, एटले ते पण
दरेक मुमुक्षुना जीवनमां साथे होय छे.
• हवे एथी जरा ऊंचे एक वानरभाई बेठा छे ने देशव्रतरूपी केरी खाय छे; ते एम सूचवे छे के
तिर्यंचजीवोने पण सम्यग्दर्शन अने देशव्रत (पंचम गुणस्थान) होई शके छे.
• पछी जरा ऊंचे चारित्ररूपी केरी लेवा माटे एक बाळक हाथ लंबावी रह्यो छे–जे वस्त्र वगरनो
छे; एटले के चारित्रदशा बाळक जेवी निर्विकल्प (दिगंबर) होय छे एम ते सूचवे छे.
• आ तरफ केवळज्ञानरूपी मोटी केरी लेवा माटे त्रण बाळको संपीने केवी महेनत करी रह्या छे!
छतां ते जरा दूर रही जाय छे. ते एम सूचवे छे के अत्यारे अहींना जीवोने केवळज्ञान नथी,
पण नजीकमां अल्पकाळमां ते प्राप्त करशे.
• बीजुं आ बाळको नीचा नमीने एकबीजाने सहाय करी रह्या छे, ते एवा सरस भाव सूचवे
छे के धर्मनी साधनामां बधा साधर्मीओए नम्रपणे एकबीजाने टेको अने प्रोत्साहन आपवुं
जोईए.
• सौथी उपर मोक्षनी केरी छे.
बंधुओ! आपणे आपणा जीवनमां अत्यारथी ज जो साचा धर्मना संस्कारो वावीशुं तो ते
संस्कार वधी वधीने तेमांथी आवुं मजानुं धर्मरूपी आंबानुं झाड ऊगी नीकळशे ने तेना मधुरा
आनंददायी फळ खातां खातां आपणे मोक्षमां जईशुं.
• बाळकोमां आवा संस्कार रोपवा माटे आपणो “बालविभाग” छे.
जय जनन्द्र