Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
– आपणा बालविभागना हजार उपरान्त सभ्योमांथी मोटाभागना
सभ्योनी उंमर सम्यग्दर्शन प्रगट करवा जेवडी थई गई छे; माटे हवे घडीनाय विलंब
वगर तेनो उद्यम करवा मांडीए. ध्यानदशामां ते प्रगटे छे. (ध्याननुं स्वरूप पहेलां
ज्ञानी पासेथी शीखवुं जोईए.)
प्र
निर्जरातत्त्वमां अज्ञानीनी भूल शुं छे?
– आत्माना जे भावथी कर्मनी निर्जरा थाय छे ते भावने ओळखे नहि ने
बीजा भावथी कर्मनी निर्जरा थवानुं माने, अथवा सम्यग्दर्शन वगर कर्मनी निर्जरा
थवानुं माने तो तेने निर्जरातत्त्वमां भूल छे. (अहीं मोक्षना कारणरूप निर्जरानी वात
छे एम समजवुं.) वळी निर्जराना कारणरूप जे तप छे ते सुखरूप छे तेने बदले तेने जे
दुःखरूप माने तेने पण निर्जरातत्त्वमां भूल छे. निर्जरानुं कारण सम्यकत्वादि शुद्धभाव
छे, ने राग तो बंधनुं कारण छे, तेने बदले रागने निर्जरानुं कारण माने तो तेने पण
निर्जरातत्त्वमां भूल छे,–बंधना कारणने तेणे निर्जरानुं कारण मान्युं.
प्र
– अनुभव करवानो अवसर क््यो? (एक जिज्ञासु)
– अत्यारे हमणां ज.
प्र
– वांचन–श्रवण घणां करवा छतां सम्यकत्वनो अनुभव केम थतो नथी? नं. ४४९ब)
– शास्त्रोमां ने ज्ञानीना उपदेशमां जे प्रमाणे कह्युं छे ते प्रमाणे पोते करतो
नथी माटे; ज्ञानीना कहेवा प्रमाणे जो पोते अंतरमां करे तो जरूर अनुभव थाय.
प्र
– आप तो सम्यग्दर्शन उपर खुब ज भार मुको छो, अने एनां वगर बधुं
थोथां छे एम कहो छो–परंतु ज्यां सुधी सम्यग्दर्शन न पामीए त्यांसुधी शुभभाव
आदरवो–एम उपदेश केम आपता नथी?
– भईला! तमे आ आखोय प्रश्न सम्यग्दर्शन पुस्तक ३ पानुं २३ मांथी
(अथवा तो आत्मधर्ममांथी) जोई जोईने उतार्यो छे; तो तेनो जवाब पण आप
त्यांथी ज जोई लेशोजी! (सम्यग्दर्शन भाग १–२–३ ए त्रणे पुस्तको कुल छ रूपियानी
किंमतना मात्र बे रूा. मां अपाय छे, ने ते उपरांत साथे बे सखीनुं पुस्तक भेट मळे छे.)
अमे बालविभागनां बाळ, अमे जिनवरनां सन्तान;
अमने गमे नहि संसार, अमारे जावुं पेले पार.
(निरंजनकुमार)
प्र
– अरिहंत भगवान क््यां बिराजे छे? (नं. ७८७)
– पांच महाविदेहक्षेत्रमां आठ लाख जेटला अरिहंत भगवंतो बिराजे छे.
प्र
– जीवने सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र क््यारे थाय छे? (नं. ७८७)