: ४६ : आत्मधर्म : प्र. श्रावण : २४९२
हता; एवा घणाय मुनिराज (करोडो) अत्यारे विदेहक्षेत्रमां विचरी रह्या छे ने मोक्षमार्गने
साधी रह्या छे, तथा दिव्य उपदेशवडे घणाय जीवोने धर्म पमाडे छे. एवा कोई मुनिराजना
दर्शन थाय अथवा तो आपणा भरतक्षेत्रमां ज एवा कोई मुनिराज पाके–तो आपणा महान
भाग्य! परंतु भाईश्री, एवा महा मुनिराजना विरहमां छोटा मुनिराज समान सम्यग्द्रष्टि
धर्मात्माओना दर्शनथी पण आपणे परम हर्ष अने संतोष मानवो जोईए; तेमना पवित्र
उपदेशथी पण सम्यक्त्व पमाय छे, ने एवा धर्मात्मा जोवा होय तो तमे सोनगढ आवजो.
सम्यक्त्वनी भावनाथी बालविभागना एक सभ्य लखे छे के भाई, गमे तेटली
किंमत आपवी पडे ते आपीने पण मारे सम्यक्त्व जोईए.
बहेन, तमारी भावना प्रशंसनीय छे; परंतु सम्यकत्वनी किंमत बहारनी कोई वस्तु
वडे थई शके नहि. आखा जगतना किंमतीमां किंमती बधा हीरा–माणेक–रत्नो भेगा करो
तोपण तेना वडे सम्यकत्वरत्ननी किंमत थई शके नहि. सम्यक्त्वरत्ननी प्राप्ति करवी होय तो
तेनी खरी किंमत जाणवी जोईए ने ते किंमत आपवी जोईए. सम्यक्त्व जोईए तो तेनी
किंमत ए छे के आत्मानी अति तीव्र रुचि–प्रीति–लगनी करीने तेने अनुभववानो जोसदार
प्रयत्न दिनरात करवो.–आटली किंमत भरनारने सम्यक्त्वनी प्राप्ति जरूर थाय छे.
उ
० – (१) आत्मप्राप्तिनी खरी जिज्ञासापूर्वक अंतरमां ज्ञान ने रागना भेदज्ञानना
वारंवार अभ्यासवडे ग्रंथीभेद थाय.
(२) परम प्रीतिपूर्वक तेमां जागृति अने वारंवारना अभ्यासरूप उद्यम वडे धर्मात्मा
पोताना रत्नत्रयनी रक्षा करे छे.
(३) समयसारना पाने–पाने ग्रंथीभेदनुं वर्णन भरेलुं छे. छतां आपे पानुं पूछयुं
तो–गाथा ७१–७२, गा. १४४, गाथा १८१–८२–८३ तथा गा. २९४मां भेदज्ञाननुं विशेष
वर्णन छे. (बधी गाथा उपरनां कलश पण भेगां वांचशो.)
* रमेशचंद्र बी. जैन (वडासण)
तमे मोकलेल कोयडो जराक सुधारीने आ अंकमां आप्यो छे.
* स्वीट्झरलेन्डमां वसता श्री दक्षाबेन न्यालचंद शाह (मलुकचंदभाईना पौत्री) –के
जेओ बालविभागना हजार उपरांत सभ्योमांथी परदेशमां वसता एक ज सभ्य छे–तेओ
जन्मदिवसे बालविभाग तरफथी मळेला सन्देशना जवाबमां लखे छे के–“मारा १८मा
जन्मदिवसे बालविभाग तरफथी जे उत्तम शुभेच्छा तथा भेट (फोटा) मळ्या ते स्वीकारतां
घणो आनंद थयो ने ते बदल घणो घणो