Atmadharma magazine - Ank 273a
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४प :
– हा, दरेक जीव ज्ञानरूपी खोराकथी ज जीवे छे. ज्ञानरूपी खोराक वगर कोई जीव
जीवी न शके.
प्र
– जीव दुःखी केम छे?
– सुखना दरियामां डुबकी नथी मारतो माटे.
* महेसाणाथी जयेश जैन (नं. ४६२) पूछे छे–
मेरूपर्वत क््यां आव्यो? तेना उपर शुं छे?
मेरूपर्वत पांच छे. एक जंबुद्वीपमां, बे धातकीखंडद्वीपमां तथा बे पुष्करद्वीपमां;
आपणा जंबुद्वीपनो जे मेरु छे तेनुं नाम सुदर्शन मेरु छे; ते अहींथी उत्तरदिशामां लगभग
प०, ००० पचासहजार योजन दूर छे. (१ योजन=लगभग प००० माईल) ते मेरु–पर्वत
एक लाख जोजन ऊंचो छे. दरेक मेरु उपर १६–१६ जिनमंदिरो छे, दरेक मंदिरमां १०८
रत्नमय जिनप्रतिमाओ छे. नंदनवन पण आ मेरूपर्वतोमां ज छे. मेरुपर्वतनी–शोभानो ने
तेना वैभवनो कोई पार नथी. शास्त्रोमां तो एनुं घणुं वर्णन छे. नंदीश्वरनी पूजाना
पुस्तकमां पंचमेरुनी पण पूजा छे ते वांचशो अथवा आदि पुराणमां वांचशो तो विशेष घणुं
जाणवानुं मळशे. मेरूपर्वत उपर तीर्थंकर भगवंतोनो जन्माभिषेक थाय छे–तेथी महानतीर्थ
तरीके जगतमां तेनो महिमा प्रसिद्ध छे. मेरुपर्वतनी दक्षिणे आपणुं आ भरतक्षेत्र छे, सामी
बाजुए (उत्तर तरफ) आपणा जेवुं ऐरावतक्षेत्र छे; मेरुनी पूर्व अने पश्चिम बंने बाजु
विदेहक्षेत्र छे. पूर्व तरफना विदेहमां सीमंधर अने युगमंधर तीर्थंकरो अत्यारे बिराजे छे;
पश्चिम तरफना विदेहमां बाहु तथा सुबाहु तीर्थंकरो बिराजे छे. आ रीते आपणा जंबुद्वीपमां
अत्यारे ४ तीर्थंकरभगवंतो विचरी रह्या छे; बीजा द्वीपमां ८ तथा त्रीजा द्वीपमां ८ एम कुल
२० तीर्थंकर भगवंतो हाल बिराजमान छे. तेमने तथा पंचमेरु तीर्थने नमस्कार हो.
* सभ्य नं. ८७प मुंबईथी लखे छे के– “आत्मधर्ममां ऋषभदेवनी कथाथी मने बहु
आनंद थयो. तेमां सिंह–वांदरो–नोळियो ने भूंड ते चारेने जातिस्मरण थयुं तथा सम्यग्दर्शन
पाम्या–ते वांचीने बहु ज आनंद थयो. तेम आपणे पण धर्म करवो जोईए. मुनिराजना
प्रवचनमां सिंह–वांदरो–नोळियो ने भूंडने जेवो रस पड्यो तेवो रस आपणने पडवो
जोईए.”
सभ्य नं. २४१ पूछे छे–
“आ आत्मधर्ममां (ऋषभदेव चरित्रमां) दिगंबर साधुना सरस चित्रो जोईने मने
पण एम भाव जागे छे के आवा मुनिवर क््यां वसता हशे?–ते अमने जणावो.”
भैया, बहुत अच्छी भावना है तुम्हारी; चित्रोमां जे मुनिराजो छे ते विदेहक्षेत्रथी
पधारेला मुनिराज छे–खास सम्यग्दर्शन पमाडवा माटे ज तेओ भोगभूमिमां आव्या