Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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२७४
त्रिकालज्ञनो विरह त्रणकाळमां नथी
एकवार गुरुदेवे प्रवचनमां घणा प्रमोदथी
कह्युं के हे जीव! तुं आनन्दित था के जगतमां
केवळज्ञाननो कदी पण विरह नथी....एनो निर्णय
करीने तुं एनो साधक था.
त्रणकाळने जाणनारा एवा सर्वज्ञनो
त्रणकाळमां कदी विरह नथी. त्रिकाळज्ञ–पुरुष आ
जगतमां त्रणे काळे होय छे. तेना कारणरूप
सर्वज्ञस्वभाव तारामां सदाय छे. तेने निर्णयमां
लईने तुं सर्वज्ञपदनो साधक था.
केवळज्ञान न होय तो आ जगतनुं अस्तित्व
ज सिद्ध न थाय.
वर्ष: २३: अंक : १० वीर सं. २४९२ द्वि. श्रावण
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी. संपादक: ब्र. हरिलाल जैन