Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण सुद पुर्णिमा: वात्सल्यधर्मनुं महान पर्व
जेम वैराग्य ए धर्मप्रेमी जिज्ञासुनुं एक आभूषण छे तेम धार्मिक–वात्सल्य ए
पण धर्मप्रेमी जिज्ञासुनुं एक किंमती आभूषण छे. संसारप्रत्ये सहज वैराग्य ने
साधर्मीप्रत्ये सहज वात्सल्य ए बंने आत्मार्थिताना पोषक छे. मुमुक्षुने धर्मनी
आराधनानो एटलो बधो प्रेम छे के ज्यां ज्यां धर्मनी आराधना जुए छे त्यां त्यां तेनुं
हृदय वात्सल्यथी ऊछळी जाय छे के वाह! जे धर्मने हुं प्रीतिपूर्वक आराधुं छुं ते ज
धर्मने आ जीवो पण प्रेमथी आराधी रह्या छे; एटले तेने धर्मनी आराधनामां सर्व
प्रकारे पुष्टि थाय, ने तेमां कोई प्रकारनुं विघ्न न हो एवी भावना पण तेने होय छे.
आनुं नाम वात्सल्य.
अहा, गमे तेवी परिस्थितिमां पण, ज्यां साधर्मीनुं वात्सल्य देखे त्यां ते
वात्सल्यनी मधुरतामां जीवननां बधा दुःख भूलाई जाय छे ने तेने धर्मनी आराधनानो
उत्साह जागे छे. पुराणोमां वात्सल्यनां अनेक जवलंत उदाहरण झळकी रह्यां छे.
महामुनि विष्णुकुमारे ७०० मुनिवरोनी जे वात्सल्यभावेथी रक्षा करी. ते दिवस
‘रक्षापर्व’ तरीके भारतमां प्रसिद्ध बन्यो....जे आजेय आपणने भाई–बहेनना
उदाहरणद्वारा निर्दोष वात्सल्यनो मधुर सन्देश आपे छे.
रावणना उपवनमां अनेक दिवसथी अन्नना त्यागी सीताजी ज्यारे हनुमान
जेवा धर्मात्माने देखे छे त्यारे तेने धर्मनो भाई मानीने अतिशय वात्सल्य उभराय
छे....जेम वाछडां प्रत्ये वात्सल्य धरावती गाय कांई बदलानी आशा राखती नथी, तेम
वात्सल्य ए धर्मीनी सहज वृत्ति छे, एमां बदलो मेळववानी आशा होती नथी.
सीताजीना हरणप्रसंगे जटायु जेवा गीध पक्षीने पण ए धर्मात्मा प्रत्ये एवुं वात्सल्य
ऊभरायुं के रावणनी शक्तिनी दरकार कर्या विना ए धर्मात्मानी रक्षा खातर पोतानां
प्राण होमी दीधा. धर्मात्माओने एकबीजा प्रत्ये जे सहज वात्सल्य झरतुं होय छे तेना
अनेक मधुर प्रसंगो आजेय नजरे जोवा मळे छे.....ने त्यारे एम थाय छे के वाह! आवुं
धर्मवात्सल्य सर्वत्र प्रसरो.