Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
दर्पणमां शुं देखाय छे?
वंदित्तुं सव्वसिद्धे एम कहीने पहेली गाथामां आचार्यदेवे सिद्धभगवंतोने
नमस्कार कर्या छे; तेओ कहे छे के हे भव्य! हुं मारा अने तारा आत्मामां सिद्धने स्थापुं
छुं. साध्यरूप जे शुद्ध आत्मा, तेने जोवा माटे सिद्धभगवंतो स्वच्छ दर्पणसमान छे. जेम
स्वच्छदर्पणमां पोतानुं जेवुं रूप होय तेवुं स्पष्ट देखाय छे, तेम सिद्धभगवानरूपी
स्वच्छदर्पणमां जोतां पोतानुं जेवुं शुद्धस्वरूप छे तेवुं स्पष्ट देखाय छे. आ रीते आत्मामां
सिद्धनी स्थापनारूप अपूर्व मंगळ करीने आचार्यदेवे समयसारनो प्रारंभ कर्यो छे.
जेवा शुद्ध सिद्धभगवान छे तेवुं ज शुद्धस्वरूप मारामां छे.–आम स्वसन्मुखता
वडे प्रतीत करे त्यारे सिद्धभगवाननी परमार्थस्तुति थाय छे. सिद्धप्रभुनी परमार्थ
ओळखाण ने परमार्थ वंदन सिद्ध सामे जोवाथी नथी थती पण पोताना आत्मामां
अंतर्मुख थाय त्यारे ज सिद्धप्रभुनी परमार्थ ओळखाण ने परमार्थ वंदन थाय छे.
समयसार एटले साधकभावनुं शांत झरणुं! आ समयसारमां कहेला भावोना
घोलन वडे साधकने स्वानुभूतिमां शुद्धआत्मा प्रकाशमान थाय छे. आ समयसार तो
शुद्धआत्मस्वरूप देखाडनारो अरीसो छे. जे सिद्धने जाणे ते शुद्धात्माने जाणे, जे
अरहिंतने ओळखे ते शुद्धात्माने ओळखे; परिणति रागादिथी छूटी पडीने शुद्धआत्मानी
सन्मुख थाय त्यारे ज अरिहंत–सिद्ध वगेरेनी खरी ओळखाण थाय.