Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
ज्ञान अने राग एक ज समये होवा छतां
ज्ञान मोक्षनुं कारण छे; राग बंधनुं ज कारण छे
एक जीवने सम्यग्ज्ञान अने राग बंने एक साथे होई शके?
हा, कोई साधकने सम्यग्ज्ञान अने राग बंने साथे होय छे; परंतु बंने साथे होवा
छतां बंनेनी जात जुदी छे; काळ एक होवा छतां भावमां बंनेनी जुदाई छे, ज्ञान तो
मोक्षनुं कारण छे ने राग तो बंधनुं कारण छे,–एम ते ज काळे बंनेनी अत्यंत जुदाई छे.
कोई एम माने के ज्ञानीनो जे शुभराग छे ते तो बंधनुं कारण नहीं होय,–तो ते
जीव भ्रमणामां छे, अज्ञानीनो राग ते जेम बंधनुं कारण छे तेम ज्ञानीने पण जे
शुभराग छे ते बंधनुं ज कारण छे. राग बंधनुं कारण होवामां मिथ्याद्रष्टि के
सम्यग्द्रष्टिनो कोई तफावत नथी, अर्थात् राग सम्यग्द्रष्टिने हो के मिथ्याद्रष्टिने हो, जे
कोई जीवने जेटलो राग छे ते बंधनुं ज कारण छे, मोक्षनुं नहीं. ज्ञानीने जे ज्ञानभाव छे
ते मोक्षनुं कारण छे. ज्ञानीने पण ज्ञान ने राग ए बंने कांई मोक्षनुं कारण नथी, तेने
पण मोक्षनुं कारण तो एक ज्ञान ज छे, ने राग तो बंधनुं ज कारण छे, ए नियम छे.
एटलुं खरुं के अज्ञानी करतां ज्ञानीनो राग अनंतो अल्प छे, तेथी तेने बंधन पण
अनंतु ओछुं छे, ने निर्जरा घणी छे, ते निर्जरा शुद्धज्ञानना बळे थाय छे. आथी
शुद्धज्ञान छे ते पूज्य छे, आदरणीय छे; अने शुभरागादि जे अशुद्ध भावो छे ते हेय छे,
केमके ते बंधनना कारण छे.