: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४९ :
निर्णय करवो, स्वसन्मुख थई पर्यायने अंतर्लीन करवी ने द्रव्य–गुण–पर्यायने एकरसपणे
अनुभववा;–आवा निर्णय अने स्वानुभूतिरूप क्रिया छे.
(३) प्र
०– सम्यग्दर्शन पछी मोक्ष क््यारे मळे छे?
उ
०–ज्ञान ने चारित्र पूरा करीए के तरत ज. एक बालसभ्यना माताजी लखे छे के–
“बालविभागथी बाळकोमां धर्मसंस्कारना बीज रोपाय छे, अने तेना वडीलोमां पण
तत्त्वतरंगोनी अवनवी समजण वधी रही छे. मारो पुत्र गुरुदेवनो साचो भक्त बनी
वीतरागधर्म प्रगट करे ए ज अभ्यर्थना; एना माता–पिता तरीके अमे पण गौरव
अनुभवीए छीए. ने भविष्यमां गुरुदेवना सान्निध्यमां जीवन वीतावीए एवी भावना
भावीए छीए.”
* सुरेन्द्रनगरथी आपणी संस्थाना माननीय ट्रस्टी श्री मगनभाईए एक पत्र द्वारा
पोतानो प्रेम अने प्रसन्नता व्यक्त करेल छे.
आभार नोंध:–
खूब ज विकसी रहेला आपणा बालविभागमां सभ्यपत्रक (आंबानुं झाड) तथा
जन्मदिवसना अभिनंदनना कार्ड संबंधी योजनामां मुंबईना सुप्रसिद्ध गुजराती–साप्ताहिक
‘जन्मभूमि–प्रवासी’ नो ‘बालजगत’ विभाग केटलीक प्रेरणारूप बन्यो छे, ते बदल ते
पत्रनो तथा तेना संपादकश्रीनो आभार मानीए छीए. –सं.
* स. नं. १४६८ लीलाबेन जैन (सायला राजस्थान) तरफथी सन्देश छे के
बालविभाग वांचीने घणो हर्ष थयो. मारा साधर्मी बालमित्रोने कोई पुस्तक भेट अपाय
तेमां वापरवा माटे रूा. १०१ मारा तरफथी मोकलुं छुं–ते स्वीकारशोजी.
आपनो पत्र मळ्यो छे–
“वांचको साथे वातचीत” ना आ विभागमां सेंकडो सभ्योना तेमज बीजा अनेक
जिज्ञासुओना पत्रो मळ्या छे; ने तेमांथी आत्मधर्ममां लेवा योग्य होय ते लीधुं छे. दर महिने
बालमित्रोना ४०० जेटला पत्रो आवे छे, ते बधा समाई शकता नथी एटले तेमांथी
उपयोगी होय ते पसंद करीने लेवाय छे. व्यक्तिगत जवाब लखवा जेवुं होय तेने जुदो
जवाब लखाय छे.
आ विभागनी विविधताने लीधे बधा जिज्ञासुओने आ विभाग गम्यो छे, ने सौ
उत्साहपूर्वक तेमां साथ आपी रह्या छे. विचारोनी आप–ले द्वारा साधर्मीओने एकबीजा साथे
वात्सल्यथी सांकळवा माटे आ विभाग विशेष उपयोगी नीवडयो छे. (केटलाक सभ्योनां
पत्रो हजी पडया छे, जे हवे पछी लईशुं.)
+ सरवाळा ने – बादबाकी
ज्ञान+वैराग्य+ध्यान = केवळज्ञान
ज्ञान–वैराग्य = ०
रत्नत्रय–सम्यग्दर्शन = ०
आत्मा+मोह = संसार
आत्मा–विभाव = मोक्ष
ज्ञान+ध्यान = आनंद