Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 51 of 57

background image
: ४८ : आत्मधर्म : द्वि. श्रावण : २४९२
:– भाईश्री, तमे तो ‘परमात्मा’ मां फकत २४ भगवान समाडवा मांगो छो; खरूं
ने? परंतु अमे तो अनंता सिद्ध भगवंतो तथा अरिहंत भगवंतो–ए बधायने “परमात्मा”
मां समाडीए छीए, केमके ते बधाय परमात्मा छे. ने जो शुद्धद्रष्टिथी जोईए तो आपणे पण
ए परमात्मानी पंक्तिमां भेगा छीए! बोलो, केवी मजा!
* प्र:– आपणे भगवाननी पूजा–भक्ति–चिंतन करीए तो आपणने आनंदनो
खजानो मळी शके? (नं. ४२)
:– जेमनी पूजा–भक्ति करीए छीए तेमना स्वरूपने जो ओळखीए, अने तेओ कहे
छे तेम करीए, तो जरूर आत्मानो मजानो मळे. (जुओ, प्रवचनसार गाथा–८०)
* (१) अरूणाबेन मणियार बी. ए. (नं. १३८६) मुंबईथी लखे छे के–
“सभ्य बनवामां घणुं मोडुं थयुं, पण जाग्या त्यारथी सवार. बालविभाग खुबज
आनंद आपे छे; हुं रसपूर्वक वांचुं छुं. आ बालविभागमां जे अनेरो आनंद आवे छे ते बी
ए. सुधी भणवामां क्यांय नहोतो मळ्‌यो. ‘बालविभाग’ नुं नाम नानुं छे पण मोटेरांओने
पण आनंद आपे छे. बी. ए. सुधी भणवा छतां अहीं तो एकडे एकथी ज शरू करवानुं छे
अने ए एकडामां ज वधारे आनंद आवे छे. तो आगळ जतां केवो आनंद आवशे? बीजा
कोई पण भणतर करतां आ ज वधारे महत्त्वनुं अने उपयोगी छे. वरसादनी जेम
‘आत्मधर्म’ नी राह जोउं छुं.
(२) जागृतिबेन मणिलाल शेठ (नं. १३प१) मुंबईथी लखे छे–आत्मधर्मना
बालविभागमां आटला बधा सभ्यो थई गयां ने हुं तो पाछळ रही गई. हवे जल्दी
आत्मानी ओळखाण करीने आगळ वधीश. आंबानुं झाड जोईने बहु खुशी थई; तेमांथी
सम्यग्दर्शन पामवा माटे पुरुषार्थ करीश.
बहेन, तमारी बंनेनी भावना माटे धन्यवाद! ते भावना सफळ थाव. बाकी तमे पण
बधाय सभ्योनी साथे ज छो, जराय पाछळ नथी. सभ्य नं. १ आगळ, ने नं. १३८६ पाछळ
एवा भेद आपणा बालविभागना परिवारमां नथी. बालविभागना साधर्मी–परिवारमां तो
हम सब साथ है– आपणे बधा साथे ज छीए. माटे आनंदथी भाग लेजो.
* आफ्रिकाथी हमणां शेठश्री भगवानजी कचराभाईनो पत्र आव्यो छे. गुरुदेव प्रत्ये घणो
ज भक्तिभाव व्यक्त करीने तेओ लखे छे के–आत्मधर्म वांचीने घणो ज आनंद आवे छे. तेमां
खास करीने बालविभाग द्वारा बाळकोने सत्धर्मनी पीछाण कराववानी जे झुंबेश उपाडी छे ते कार्य
वधारे फळी –फूलीने मोटुं थाय तो गुरुदेवे सत्धर्मनी जे बंसरी बजावी छे तेमां वृद्धि थशे. (पत्र
विशेष लांबो छे. अहीं मात्र उल्लेख कर्यो छे.)
* सभ्य नं. १३० नां प्रश्नो:–
प्र
– सम्यग्दर्शननी प्राप्ति करवा केटलो पुरुषार्थ जोईए? उ०–घणो ज.
(२) प्र
– तेनी शुं क्रिया छे? उ०–अरिहंत प्रभुना द्रव्य–गुण–पर्याय जेवा पोताना
आत्मानो