Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. श्रावण : २४९२ आत्मधर्म : ४७ :
न थाय त्यां सुधी बधाय जीवोनो पूर्वनो अनंतकाळ ए रीते बाह्यभावोमां ज वीत्यो छे.
जेओ अंतरभाव प्रगट करीने आराधक थया तेमनी बलिहारी छे; जे काळ गयो ते गयो पण
हवे एक क्षण पण बाह्यभावनी प्रीतिमां न वीते ने संसारनो रस छूटीने आत्मरस जागे
एवा लक्षे वांचन–विचार ने सत्संग कर्तव्य छे. देव–गुरुनो महिमा ओळखवो,
ज्ञानीधर्मात्माना गुणोनुं वारंवार चिंतन करवुं, महापुरुषोना पवित्र जीवनने याद करवुं ने
अंदर वैराग्यनी तीव्रता वधारवी. जीव मक्कमपणे पोतानी आत्मशांति प्राप्त करवा मागे तो
तेने ते जरूर मळे ज.
नो. ७प४ बेंगलोर: आपको व आपके मित्र को धार्मिक चर्चाके लिये धन्यवाद!
आपके मित्रका एड्रेस मिलनेपर उनको भी ‘आमका वृक्ष’ भेज देेंंगे।
* आत्माने मोक्ष पामवाना मार्ग केटला छे? केवी रीते छे? (नं. ३४३)
“एकहोय त्रणकाळमां परमारथनो पंथ” मोक्षनो मार्ग एक ज छे, अने ते मार्ग
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप छे.
* प्र
:– आकाश मोटुं के ज्ञान? (नं. ४१४)
:– भाई, आकाशमां ज्ञान समाई जाय छे ने ज्ञानमां ज्ञेयपणे आकाश समाई जाय
छे. एटले क्षेत्रथी आकाश मोटुं छे, ने भावथी ज्ञान मोटुं छे, आकाशना अविभागप्रदेशो
करतां ज्ञानना अविभागअंशो अनंतानंत गुणा वधारे छे.
* फत्तेपुरमां बालविभागनी पाठशाळा:– “फत्तेपुरथी श्री बाबुभाई लखे छे के अहीं
वीरशासनना प्रवर्तन दिवसे (अषाड वद एकमे) बालविभाग–पाठशाळा शरू करेल छे ने
जैन बालपोथीनो अभ्यास शरू कर्यो छे. पाठशाळाना पचीस जेटला बाळको उत्साहथी
बालविभागमां जोडाया छे, तेमनां नामो आ साथे मोकल्या छे.’ (बडी सादडी तेमज
फत्तेपुरनी पाठशाळानी आ पद्धति बाळकोने माटे उत्साहप्रेरक तथा उच्च धार्मिक संस्कार
रेडनारी छे; ने दरेक गामने माटे ते अनुकरणीय छे. नाना– मोटा दरेक गाममां नियमित
जैनपाठशाळा चालती होय ते आवश्यक छे. –सं)
फत्तेपुरथी स. नं. १४०२ लखे छे–बालविभागनुं ‘आंबानुं झाड जोईने एम थाय छे
के जाणे मोक्षनां फळ नजीक आव्या. सुवर्णपुरीधाममांथी आवी नवी नवी जातनी यादगीरी
मलवाथी मारुं हृदय घणुं उल्लसी रह्युं छे.”
* आंबानुं झाड अने तेनी मीठी केरी मळतां घणा वांचकोए तेमज बालबंधुओए प्रमोद
व्यक्त कर्यो छे. अने लखे छे के तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र समाई जाय छे, १४ गुणस्थान
पण समाई जाय छे. अने उत्तम फळ प्राप्त करवा माटे धार्मिक पुरुषार्थनी प्रेरणा मळे छे.
*प्र:– सौथी मोटुं तीर्थं कयुं?
उ:– रत्नत्रयस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो ते; ए तीर्थनी यात्रावडे संसारसमुद्रने
तराय छे. सम्मेदशिखर वगेरे तीर्थोनी यात्रा पण आ रत्नत्रयरूप तीर्थना स्मरण माटे ज छे.
प्र
:– “परमात्मा” मां केटला तीर्थंकर भगवानना आंकडा छूपायेल छे? (नं. १६४–
मुंबई)