Atmadharma magazine - Ank 274
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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बालमित्रो! आपणे एक महान कार्य करवानुं छे: जुओ, चित्रमां! पेलो जीव घणा
वखतथी संसाररूपी जेलमां पूरायेला होवाथी हवे मुंझाणो छे....ने मोक्षमां जवा चाहे छे; पण
मोक्षमां कया रस्ते जवुं एनी एने खबर नथी. तेथी ते कहे छे के ‘मने मोक्षनो मार्ग
बतावो.’ तो तमे तेने मोक्षमार्ग बतावीने मोक्ष सुधी पहोंचाडशो! भले कदाच ठेठ मोक्ष सुधी
तमे तेने न पहोंचाडो......ने सम्यग्दर्शन सुधी पहोंचाडो, तोपण चालशे; केमके सम्यग्दर्शन
पछीनो मार्ग तो सीधो होवाथी ते जीव एनी मेळे शोधी लेशे. अरे, सत्समागम सुधी
पहोंचाडशो तोपण चालशे, केमके पछी तो सन्तो ज तेने मार्ग बतावीने पोतानी साथे तेडी
जशे. पण जो जो हो, भूलथी मोक्षने बदले स्वर्गादिना मारगे न चडावी देता! ने मार्ग
शोधतां जराक वार लागे तो थाकशो नहि, पण जिज्ञासाने पुष्ट करीने महेनत करशो तो
मोक्षनो मारग जरूर मळशे.