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जैन कर्मचारीओने माटे बे कलाक मोडा आववानी छूट आपीने खास सुविधा
आपेल छे.
दिगंबर के श्वेतांबर बेमांथी कोईने नवा विशेष हक्क प्राप्त थता नथी, के
बेमांथी कोईना जुना हक्कोने बाधा पहोंचती नथी. अगाउ कोर्ट द्वारा जे प्रमाणे
हक्क नक्की थयेला ने यथावत् रहेवानी अने तेनुं संरक्षण थवानी बाहेंधरी
उपरोक्त करारथी मळे छे.
रूपिया आप्या हता. सीमोगा, हुमच, बेंगलोर तथा तुमुकुर वगेरेमां सारी
जागृती आवी छे.
तेमां पण पचासलाखनी गणतरी नोंधाई गई छे. आ उपरथी समस्त जैनोनी
वस्ती एक करोड जेटली होवानुं द्रढ अनुमान सहेजे थई शके छे.
कार्यक्रमो पण योजाय छे. वळी जिनेन्द्रभगवाननी पधरामणी थया पछी
मुमुक्षुओ वधु उत्साहित बन्या छे. ता. २८–८–६६ ना रोज प्रवचन वगेरेनो
विशेष कार्यक्रम राखवामां आव्यो हतो. तेमां कहाननगर सोसायटी (दादर)
पाठशाळाना बाळकोए संवाद वगेरेनो सुंदर कार्यक्रम आप्यो हतो. मुंबई मुमुक्षु
मंडळना प्रमुखश्री रमणीकभाई आ प्रसंगे हाजर हता ने तेमना हाथे बाळकोने
ईनाम वहेंचाया हता.
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श्रीमान पंडितजी जयपुरमां थया, अने मोक्षमार्गप्रकाशक वगेरेनी रचना पण
तेमणे जयपुरना जिनमंदिरमां करी हती.
बेसशे; ने १९२४ ना कारतक सुद पुनमे सो वर्ष पूरा थशे. ते प्रसंगे श्रीमद्
राजचंद्रशताब्दि महोत्सव उजववानुं आयोजन (अमदावाद वगेरेमां) चाली
रह्युं छे.
सम्मेदशिखर प्रकरणना सुखद अंत बाबत हर्ष व्यक्त करीने जणावे छे के, ३०–
४० वर्ष पहेलां पण आवी घटना बनी हती, ने ते वखते आपणा तीर्थंक्षेत्रनी
रक्षाना महान कार्यकर्ता सर शेठ हुकमीचंदजी वगेरेए तीर्थक्षेत्र कमिटिने मजबूत
बनाववा माटे दि० जैनोना प्रत्येक घरदीठ वार्षिक एक रूपियो तीर्थरक्षा–फंडमां
योजनानी खास आवश्यकता छे, ने तीर्थं प्रत्ये भक्तिपूर्वक आटलो सहयोग
आपवा घरघरना जैनो खुशी छे. तो आ योजना विचारीने तेनो अमल
करवानुं अने तेमां आळस न करवानुं कमिटिना सभ्य सूचवे छे. आथी आपणा
पूज्य तीर्थोनी संभाळ करनारी तीर्थक्षेत्र कमिटिना हाथ मजबूत बनशे अने
समाजना उत्साहभर्या सहकारथी तेनुं कार्य सरळ बनशे......आपणा तीर्थोनी
उन्नति थशे (
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पोस्टकार्डमां लखजो, तेथी साथे सभ्य नंबर तथा सरनामुं लखजो. बीजुं कांई तेमां न
लखशे; बीजुं लखवुं होय तो जुदा पत्रमां लखशो. जेमने नवा सभ्य थवानुं होय तेओ
पोतानुं नाम–सरनामुं, उमर, अभ्यास तथा जन्मदिवस एटली विगत लखीने (आत्मधर्म
बालविभाग, सोनगढ सौराष्ट्र) ए सरनामे मोकली आपे. सभ्य थवा माटे कांई फी होती
नथी; तमे सौ आनंदथी धर्ममां रस ल्यो ए ज फी छे.
घणीवार जई आव्यो; तो हवे ए चार गतिथी जुदी पांचमी एक सरस मजानी
गति छे, जे गतिमां जवानुं आपणने बहु गमे छे,–ते गति शोधी काढो.
ओळखो छो? केवो सरस मजानो
भद्रिक एनो चहेरो छे! ए कोण
छे? ने शुं करे छे? ते जाणीने
तमने घणो ज आनंद थशे. तमे
एने ओळखी लेजो. नहितर
आवता अंकमां नानकडी कथाद्वारा
तेनी ओळखाण करावीशुं.
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ए पांच भगवंतो बालब्रह्मचारी हता. हवे–
(१) तमे ए पांचे बालब्रह्मचारी भगवंतोना नंबरनो सरवाळो करो जोईए! जो
नीचे उतरवुं ने पछी उपर उपर चाल्या जवुं. आमां सीधा जवुं ते सरळता बतावे छे,
नीचे उतरवानुं नम्रता सूचवे छे, ने पछी उपर जवानुं छे ते उन्नति माटेना ऊंचाऊंचा
परिणाम सूचवे छे. आ सरळता नम्रतापूर्वक ऊंचाभावथी सत्समागम सुधी आवी
देखाय छे ने तेनी आराधनाथी मोक्ष पमाय छे. चारगतिना चक्रथी छूटीने आवा
मार्गनी आराधना वडे आपणे मोक्ष पामीए–एवी भावना आ चित्रद्वारा व्यक्त
करवामां आवी छे.
भावना करजो. हररोज दर्शन–पूजन–होंशथी करजो. धर्मात्मा महापुरुषोना पवित्र
जीवनने याद करी करीने तेमना जेवा थवानो प्रयत्न करजो. नवा नवा शास्त्रो वांचजो.
छोडशो एटले तमारा घरमांथी पण सहेजे रात्रिभोजन छूटी जशे.
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महत्त्वनो समजीने अत्यंत रसपूर्वक तेमां भाग लई रह्या छे. आटली मोटी संख्यामां
कोलेजना विद्यार्थीओ धर्मअभ्यासमां भाग लई रह्या छे ते मात्र बालविभागनुं ज
तत्त्वप्रतिपादनशैलि एवी आत्मस्पर्शी छे के युवकवर्ग पण तेमां उत्साहथी रस ल्ये छे.
आत्मधर्मना बालविभागमां पण गुरुदेवनो ज हितोपदेश बाळको समजी शके तेवी
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११) विमळाबेन रीखवदास
प) शैलेशकुमार
वद १