Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९२ आत्मधर्म : १३ :
भगवन ऋषभदव
तेमना छेल्ला दस अवतारनी कथा
(महा पुराणना आधारे ले ब्र. हरिलाल जैन: लेखांक छठ्ठो)
*
[६]
ऋषभदेवनो पूर्वनो पांचमो भव: सुविधिराजा (श्रावकधर्मनुं पालन)
श्रीधरदेव ऐशान स्वर्गनुं आयुष्य पूर्ण थतां त्यांथी च्युत थईने आपणा
चरित्रनायक जंबुद्वीपना पूर्व विदेहक्षेत्रमां महावत्स देशनी सुसीमानगरीमां अवतर्या.
सुविधिकुमार एमनुं नाम. तेमना पिता सुद्रष्टि राजा, अने माता सुन्दरनंदा. अनेक
कळानो भंडार ते सुविधिकुमार बाल्य अवस्थामां ज बधाने आनंदित करतो हतो, अने
तेने समीचीन धर्मना संस्कार प्रगट्या हता.–ए खरुं ज छे केमके आत्मज्ञानी पुरुषोनुं
चित्त सदाय आत्मकल्याणमां ज अनुरक्त रहे छे. सुशोभित मुकुटथी अलंकृत उन्नत
मस्तकथी मांडीने स्वाभाविक लालाशवाळा चरणकमळ सुधीनी सर्वांगसुंदरताने धारण
करनार ते राजकुमार उत्तम सामुद्रिक लक्षणो वडे बधाना मननुं हरण करतो हतो.
युवानीमां उद्रेक करनारा काम–क्रोधादि शत्रुओने ते जितेन्द्रिय राजकुमारे यौवननी
शरूआतमां ज जीती लीधा हता, तेथी युवान होवा छतां पण ते वृद्ध–समान गंभीर