Atmadharma magazine - Ank 275
(Year 23 - Vir Nirvana Samvat 2492, A.D. 1966)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 49

background image
: १४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९२
देखातो हतो. खरूं ज छे, धर्मना आराधक जीवने माटे काम–क्रोधादि शत्रुओने जीतवा ए
कार्य सहज छे.
अभयघोष–चक्रवर्तीनी पुत्री मनोरमा साथे तेना विवाह थया; ऐशान
स्वर्गमांथी स्वयंप्रभ नामनो देव (श्रीमतीनो जीव, के जे भविष्यमां श्रेयांसकुमार
थवानो छे ते) अहीं सुविधिकुमारने त्यां केशव नामना पुत्र तरीके उपज्यो. वज्रजंघनी
पर्यायमां जे तेनी श्रीमती–स्त्री हती ते ज अहीं तेनो पुत्र थई. अरे, शुं कहेवुं?
संसारनी स्थिति ज एवी छे! ते पुत्र उपर सुविधि राजाने घणो ज प्रेम हतो. जीवोने
पुत्र उपर सहेजे प्रेम होय छे तो पछी पूर्व भवनी प्रिय स्त्रीनो ज जीव ज्यां पुत्रपणे
अवतर्यो त्यां तेना उपरना प्रेमनुं तो शुं कहेवुं?
सिंह, नोळियो, वांदरो अने भूंड–ए चारेना जीव भोगभूमिमां साथे उपजीने
सम्यक्त्व पाम्या हता ने पछी ईशान स्वर्गमां पण साथे ज हता, तेओ त्यांथी चवीने
आ वत्सकावती देशमां ज सुविधिकुमारनी समान विभूतिना धारक राजपुत्रो थया.
वरदत्त, वरसेन, चित्रांगद अने प्रशांतदमन नामना ते चारे राजपुत्रोए घणा काळ
सुधी राजवैभव भोगव्यो. राजवैभवनी वच्चे पण चैतन्यवैभवने तेओ भूल्या न
हता; आत्मानुं भान तेमने सदैव वर्ततुं हतुं.
एकवार अभयघोष चक्रवर्तीनी साथे ते चारेय राजपुत्रो विमलवाहन–
जिनेन्द्रदेवनी वन्दना करवा माटे गया; त्यां बधाये भक्तिपूर्वक वंदना करीने प्रभुनो
दिव्य उपदेश सांभळ्‌यो. अहा, ए दिव्यध्वनिनी शी वात! शी एनी गंभीरता! ए
सांभळतां बधाय चैतन्य–रसमां मशगुल बन्या अने संसारथी विरक्त थईने जिनदीक्षा
धारण करी. चक्रवर्तीनी साथे बीजा अढार हजार राजाओ तथा पांच हजार पुत्रोए पण
दीक्षा लीधी. ए बधाय मुनिवरो संवेग अने निर्वेदरूप परिणाम वडे मोक्षना मार्गने
साधता हता. रत्नत्रय धर्ममां अने तेना फळमां उत्कृष्ट प्रीति करीने उत्साहपूर्वक तेनी
आराधना करवी ते संवेग छे. अने शरीर, भोग तथा संसार प्रत्ये अतिशय विरक्त
परिणाम ते निर्वेद छे. आवा संवेग–निर्वेदपूर्वक ते मुनिवरो मोक्षमार्गने साधवा लाग्या.
आपणा चरित्रनायक भगवान आदिनाथ के जे सुविधिराजा थाय छे–तेना
पूर्वभवना साथीदारो तो आ रीते मुनि थया; पण राजा सुविधि केशवपुत्रना तीव्र
स्नेहने लीधे मुनिपणुं लई न शक््या; तेथी मुनिपणानी भावना राखीने तेओ श्रावकना
उत्कृष्ट धर्मोनुं पालन करवा लाग्या. जिनेन्द्र भगवाने गृहस्थधर्ममां सम्यक्त्व उपरान्त
अगियार स्थानो (अगियार प्रतिमा) कहे छे; (१) दर्शन प्रतिमा, (२) व्रत प्रतिमा,
(३) सामायिक,